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________________ कर्म के फलस्वरूप प्राप्त होने वाली विपरीत परिस्थितियों में नाराज होने से कर्म का बंध होता है । सारांश यह है कि अनुकूलता में राग करने से और प्रतिकूलता में द्वष करने से नवीन कर्मों का बंध होता है। प्रिय मुमुक्षु ! जरा तुम ही सोचो। थोड़ा शांति से विचार करो। इस दुर्घटना में मुख्य कारण कौन ? इस प्रकार की घटनाओं में हम बाह्य निमित्तों को प्रधानता देकर ड्राइवर आदि पर ही दोषारोपण कर देते हैं..."और व्यर्थ ही दुान कर नवीन कर्मों का बंध करते हैं । ऐसी विकट परिस्थिति में जिनेश्वर भगवन्तों ने हमें सोचने की सम्यग् दृष्टि प्रदान की है। दुःख पाने पर दुःख को अपने ही दुष्कृत का फल मानकर उसे समतापूर्वक सहन करना चाहिये। दुःख में समता धारण करने से प्रात्मा पूर्वकृत पापकर्मों की निर्जरा करती है और इसके साथ ही नवीन कर्मों के प्रास्त्रव-द्वार को बन्द कर देती है। दुःख में शोक/सन्ताप करने से दुःख घटता नहीं है, बल्कि बढ़ता है। दुःखमुक्ति का मार्ग है • सूख में ममता न करे । • दुःख में दीनता न करे। • सुख का भोग अनासक्त भाव से करे । मृत्यु की मंगल यात्रा-59
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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