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इस प्रकार महावीर परमात्मा ने मनुष्य-जीवन की प्राप्ति को भी अत्यन्त दुर्लभ कहा है।
मुमुक्षु दीपक !
थोड़ा सा विचार कर। हम कितने सद्भागी/बड़भागी हैं ! अत्यन्त ही दुर्लभ ऐसा मनुष्यजन्म हमें प्राप्त हो गया है । अब हमें इस प्रकार जीवन जीना है कि मृत्यु भी हमारे लिए महोत्सव रूप बन जाय । हँसते-हँसते सहज भाव से हमें यहाँ से विदाई लेनी है। जीवन की सफलता का आधार 'समाधिमृत्यु' है।
समाधि-मृत्यु अर्थात् साहजिक मृत्यु, सहज भाव से देह का त्याग/देह का विसर्जन । देह का साहजिक त्याग तभी सम्भव है, जब जीवन में देह के ममत्व-त्याग का अभ्यास किया हो ।
जिस मकान को तुम अपना मानते हो, जिस पर तुम अपना स्वामित्व धारण करते हो उसे अपना समझ कर, कोई उसे हड़पने की कोशिश करे तो उसके साथ लड़ाई-झगड़ा भी करते हो । कल्पना करो-उस मकान में तुम रात्रि में आराम से सोए हुए हो और उस समय कोई गुडा आकर तुम्हें बन्दूक दिखा कर कहे, “बाहर निकल जाओ इस मकान में से। इस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है यदि नहीं निकलोगे तो तुम्हें गोली से उड़ा दूगा"।
ऐसी विकट परिस्थिति में तुम क्या करोगे ? 'घर छोड़ दोगे न ?'
परन्तु उस घर को छोड़ते समय तुम्हारे दिल में कितनी
मृत्यु की मंगल यात्रा-31