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________________ कितने मुफलिस हो गए, कितने तवंगर हो गए। राख में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए। मुमुक्षु 'दीपक' ! धर्मलाभ। परमात्मा की असीम कृपा से आनन्द है। दो दिन पूर्व ही तुम्हारा पत्र मिला । प्रसन्नता का अनुभव हुआ। मृत्यु के रहस्यों की तुम्हारी जिज्ञासा जानकर विशेष आनन्द हुआ। जैनदशन के अनुसार प्रात्मा शाश्वत पदार्थ है। आत्मा का अस्तित्व अनादि-अनन्त है । आत्मा का न कोई जन्म है और न कभी मृत्यु । जन्म और मृत्यु प्रात्मा के धर्म नहीं हैं । व्यवहार से हम जिसे 'जन्म और मृत्यु' कहते हैं. वह तो औपचारिक है। कर्मबद्ध संसारी आत्मा अपने आयुष्य और नामकर्म के अनुसार नए-नए देह धारण करती है। मनुष्य-गति नामकर्म के फलस्वरूप आत्मा मनुष्य-देह को धारण करती है, तिर्यंच और देव-गति नामकर्म के अनुसार आत्मा तिर्यंच और देव के देह को धारण करती है और अपने आयुष्य-कर्म के अनुसार उतने समय तक आत्मा उस देह में रहती मृत्यु की मंगल यात्रा-25
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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