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सन्ताप करना अज्ञानता ही है। इस प्रकार शोक करने से केवल मोहनीय कर्म का ही बन्ध होता है ।
हमें यह अमूल्य मानव-जीवन मोहनीय कर्म के बन्धन से मुक्त होने के लिए मिला है। जिस जीवन में बन्धन-मुक्ति के लिए प्रयत्न करना है, वही जीवन 'अधिक बन्धन' के लिए न हो जाय, इसके लिए हमें विशेष सावधान बनना चाहिये।
भगवान महावीर परमात्मा ने 'पाचारांग सूत्र' के अन्तर्गत बहुत ही सुन्दर बात कही है
उठ्ठिए नो पमायए। उठो, जागो। प्रमाद का त्याग करो।
यह श्रेष्ठ जीवन सोने के लिए नहीं है बल्कि अनन्त की मोह-निद्रा में से जागृत बनने के लिए है।
जो मोहाधीन है. वह सोया हुआ हो है और जिसने मोह का त्याग किया है वह जागृत ही है ।
अनन्त काल की मोहाधीन दशा में हम सोते ही रहे हैं। जागने के लिए कोई अवसर ही हाथ नहीं लगा है। आत्मजागृति रहित जीवन व्यर्थ ही है ।
....निद्रा का अभाव' कोई जागृति नहीं है। दुनिया में ऐसे भी अनेक प्राणी हैं जो कई दिनों तक सोते भी नहीं है, परन्तु इतने मात्र से उन्हें जागृत नहीं कह सकते । जो आत्मा मोहाधीन है, वह सोई हुई ही है।
सकल विश्व में मोह का साम्राज्य फैला हुआ है। वह अच्छे-अच्छे को दबोच लेता है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-23