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राग-द्वेष की तीव्रता कम होती जाएगी त्यों-त्यों हमें आत्मिक प्रानन्द की अनुभूति होती जाएगी
और
उस आनन्द की प्राप्ति के बाद मृत्यु का हमें कोई भय नहीं रहेगा। मृत्यु का हम स्वागत कर सकेंगे। वह मृत्यु हमारे लिए अमंगल की निशानी नहीं, किन्तु मंगल-यात्रा का कारण बनेगी।
प्रस्तुत कृति.. परम पूज्य जिन-शासन के अजोड़ प्रभावक कलिकाल-कल्पतरु परमाराध्यपाद गच्छाधिपति प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वर जी म. सा. की सतत कृपा-दृष्टि, परम पूज्य अध्यात्मयोगी प्रशान्त मूर्ति पूज्यपाद गुरुदेव पंन्यासप्रवरश्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्यश्री की सतत कृपा-वृष्टि तथा प. पू. सौजन्यमूर्ति प्राचार्यप्रवर श्रीमद् विजय प्रद्योतन मरीश्वरजी म. सा. के शुभाशीर्वाद एवं सौजन्यशील पू. पंन्यासश्री वज्रसेन विजयजी म. सा. की सहयोगवृत्ति आदि का ही मुफल है। ____ पुस्तक के अनुरूप 'मृत्यु की चिंतन यात्रा' का आलेखन करने वाले प. पू. प्राचार्यप्रवर श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म. का मैं आभारी हूँ। पुस्तक के विषय-मंदर्भ में समुचित प्रस्तावना-लेखक राघवप्रसादजी पाण्डेय धन्यवाद के पात्र हैं।
अन्त में, मतिमन्दता से पुस्तक में कहीं भी जिनाज्ञा-विरुद्ध लिखने में पाया हो तो उसके लिए मिच्छामि दुक्कडम् ।
अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्यश्री के
कृपाकांक्षी मुनि रत्नसेन विजय ( 15 )