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________________ 19 पुनरपि रजनी पुनरपि दिवसः , पुनरपि पक्षः पुनरपि मासः । पुनरप्ययनं पुनरपि वर्ष , तदपि न मुञ्चत्याशामर्षम् ।। प्रिय मुमुक्षु 'दीपक' ! धर्मलाभ। परमात्म-कृपा से आनन्द है। 'वैराग्यशतक' ग्रंथ तुमने कण्ठस्थ कर लिया है, जानकर मुझे प्रसन्नता हुई। दुनिया में सुख-दुःख की घटमाल चलती रहती है। मेरा तुमसे एक प्रश्न है 'सुख और दुःख में अधिक भयंकर कौन ?' मुझे लगता है कि स्थूलदृष्टि से तुम यही कहोगे कि 'दु:ख अधिक भयंकर है।' परन्तु सम्यग्ज्ञानी महापुरुषों का जवाब इससे भिन्न ही मिलेगा-वे कहते हैं, 'दुनिया में दुःख से भी अधिक भयंकर सुख है।' तुम्हें यह जवाब अजीब सा लगेगा, परन्तु सूक्ष्मदृष्टि से निरीक्षण करोगे तो तुम्हारी आत्मा में से भी अन्त में यही जवाब आएगा। मृत्यु की मंगल यात्रा-142
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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