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२. धन्य है गजसुकुमाल मुनि को! श्वसुर सिर पर अंगारे डाल रहा है, फिर भी श्वसुर के प्रति क्रोध का नामोनिशान नहीं । वे तो अडिग खड़े हैं, सोच रहे हैं 'अंगारा नीचे गिर गया तो निरपराध त्रस जीव मर जायेंगे।'
३. धन्य है चिलातीपुत्र मुनि को! चींटियों ने उनके देह को जाली जैसा बना दिया है, फिर भी उनकी समता कितनी है !
४. धन्य है मेतारज मुनि को! आँख के डोले बाहर निकल आए हैं, फिर भी उनके दिल में सोनी के प्रति कोई रोष नहीं।
५. धन्य है शालिभद्र मुनि को ! स्वयं फूल से कोमल और फूलों की शय्या पर हमेशा सोने वाले। वे पादोपगमन अनशन स्वीकार कर भयंकर ताप को सहन कर रहे हैं।
६. धन्य है स्कंदिलाचार्य के चरमशिष्य बालमुनिवर को। फूल सी काया होने पर भी मरणांतक उपसर्ग में भी अपूर्व समता को धारण कर जिन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है।
७. धन्य है खंधक मुनि को! चमड़ी उतारी जा रही है, फिर भी उस चाण्डाल को उपकारी मान रहे ।
८. धन्य है वीर प्रभु को ! धन्य है दृढ़प्रहारी को ! धन्य है अरिणकापुत्र प्राचार्य को! धन्य है महासती साध्वी सीता को !
महापुरुषों के चरित्र-स्मरण से हमें दुःख सहन करने का बल प्राप्त होता है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-138