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द्विरंगी है। उसके बाह्य आकार और अन्तरंग आकार में रात और दिन का अन्तर है।
जो सांसारिक पदार्थ बाहर से अत्यन्त आकर्षक, चमकदार और सुख-प्रदर्शक लगते हैं, उन्हीं पदार्थों का संसर्ग करने पर वे ही पदार्थ अत्यन्त दुःखदायी प्रतीत होते हैं ।
कँटीली झाड़ियों से व्याप्त पर्वत दूर से ही सुहावने लगते हैं, निकट जाने पर तो पत्थर और काँटें ही हाथ लगते हैं, उसी प्रकार सांसारिक पदार्थों का आकर्षण भी दूर से ही होता है, निकट जाने पर तो वे ही अत्यन्त नीरस प्रतीत होते हैं।
मुमुक्षु 'दीपक' ! जरा शान्ति से विचार करो।
जो स्वयं छह-छह खण्ड के अधिपति-चक्रवर्ती थे, जो पाठ सिद्धियों और नौ निधियों के मालिक थे.""जो ६४००० स्त्रियों के स्वामी थे; जिनके पास पारावार सैन्य थे. वैभव और विलास के भरपूर साधन थे; एक बटन दबाते ही अनेक नौकर चाकर जिनकी सेवा में रात और दिन खड़े पैर तैयार रहते थे, जिनके पास देवताओं का सान्निध्य था, प्रश्न खड़ा होता है ऐसे चक्रवतियों ने भी इच्छा-पूर्वक संसार का त्याग क्यों किया होगा?
आनन्द की बात है कि हमारे इस प्रश्न का जवाब 'वैराग्यशतक' ग्रंथ के कर्ता स्वयं ही दे रहे हैं।
छायामिसेरण कालो , सयलजियारणं छलं गवेसंतो। पासं कह वि न मुचइ , ता धम्मे उज्जमं कुरणह ॥६॥
मृत्यु की मंगल यात्रा-124