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श्राज समाज व राष्ट्र में व्यक्ति का नैतिक स्तर नीचे गिरता जा रहा है, उसके पीछे अशुभ शब्दों से दूषित वातावरण भी कारण है । चारों ओर अश्लील शब्द व संगीत से वातावरण दूषित बनता ही जा रहा है चारों ओर हल्के व अश्लील साहित्य का पठन-पाठन व प्रचार-प्रसार बढ़ता ही जा रहा है। इसी के फलस्वरूप लोगों के नैतिक जीवन में गिरावट आती जा रही है ।
पवित्र शब्दों का पठन-पाठन, चिन्तन-मनन मात्र हमारे चित्त को ही प्रसन्न नहीं करता है, बल्कि हमारी आत्मा को भी विशुद्ध बनाता है ।
ठीक ही कहा है-- “ शस्त्र प्रहार से होने वाले जख्म की अपेक्षा शब्द - प्रहार का जख्म भयंकर होता है । "
"A wound from a tongue is worse than a wound from a sword, for the latter affects only the body, the former the spirit."
एक ऐसा ही वाक्य है
"The tongue is but three inches long, yet it can kill a man six feet high.
'जीभ भले ही तीन इंच लम्बी है, परन्तु वह छह फुट के आदमी को खत्म कर सकती है ।'
सत्साहित्य / सद्वाचन जीवन की अमूल्य निधि है, जो आत्मा को उत्थान के पथ पर आगे बढ़ाती है, खराब साहित्य का वाचन
मृत्यु की मंगल यात्रा - 104