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अपना मुंह फेर लिया। उनकी इस प्रवृत्ति से चक्रवर्ती को भारी पाश्चर्य हुआ। वे बोले--'अरे ब्राह्मणो ! मेरे रूपदर्शन के लिए आए हो न? तो मेरे सामने देखो।'
चक्रवर्ती की यह बात सुनकर ब्राह्मणवेषधारी देवों ने कहा-'अब क्या देखें? आपका रूप तो नष्ट हो चुका है आपके शरीर में रोग पैदा हो गया है। आपको विश्वास न हो तो थूक कर देखें ।' ___ तुरन्त ही चक्रवर्ती ने पानदानी में थूका और उस थूक में उन्होंने छोटे-छोटे कीड़ों के दर्शन किये। . बस, तुरन्त ही चक्रवर्ती के रूप-अभिमान पर चोट लगी। सोचने लगे, 'अहो ! कैसा यह क्षणभंगुर देह है ? अहो ! इतने अल्प समय में इस देह की ऐसी विक्रिया ?'..."और उन्होंने आत्म-कल्याण के पथ पर प्रयारण कर दिया। भयंकर रोग परीषह को सहन कर सदा के लिए बंधन-मुक्त हो गए।
मुमुक्षु 'दीपक' !
तुम ही बतायो" इस संसार में ऐसा कौनसा पदार्थ हैं, जिस पर राग किया जाय ?
संसार के पदार्थो के इस विकृत-स्वभाव को देखकर किस बुद्धिमान् पुरुष का मन संसार के तुच्छ सुखों में आसक्त होगा?
बस, आज इतना ही पर्याप्त है। 'वैराग्य शतक' का चिन्तन सतत चालू रखना। आराधना में उद्यमवंत रहो । परिवार में सभी को धर्मलाभ । शेष शुभम् ।
-रत्नसेनविजय
मृत्यु की मंगल यात्रा-92