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मेरे सर्वस्व हैं.."अब मुझे किसी की चाह नहीं है"अब मेरो अन्य कोई राह नहीं है। परमात्मा के साथ की प्रीति सादि-अनन्त है, जबकि दुनिया में जो प्रीति होती है वह सादि-सान्त होती है।
लग्न आदि के द्वारा संसार में जो संबंध जोड़े जाते हैं, वे सम्बन्ध अधिकतम जीवन-पर्यन्त रह सकते हैं।
वर्तमान युग में तो इन सम्बन्धों के बीच प्रतिक्षण खतरा है। किसी भी समय किसी के जीवन में खतरे की घंटी बज सकती है।
आज के 'डाइवोर्स' के युग में तो लग्न-जीवन के संबंध भी कहाँ स्थिर हैं ? अमेरिका जैसे देश में तो एक ही स्त्री अपने जीवन में डाइवोर्स द्वारा अठारह-अठारह पति कर लेती है ।
संसार में जड़ पदार्थों का सौंदर्य भी कहाँ स्थिर है ? जगत् के समस्त पदार्थ समस्त भाव परिवर्तनशील हैं। पुद्गल मात्र का यह स्वभाव है उसकी पर्यायें अवस्थाएँ सतत बदलती रहती हैं।
जिस वस्तु को देखकर सुबह मन आनन्दित होता है... शाम को उसी वस्तु को देखकर मन उद्विग्न बन सकता है ।
पौद्गलिक पदार्थों के भाव बदलते रहते हैं, फिर भी आश्चर्य है कि अज्ञानता व मोह के कारण व्यक्ति, वस्तु की किसी एक पर्याय में मोहित बन जाता है और उसे पाने के लिए अत्यन्त लालायित हो उठता है।
जिस प्रकार 'पंतंगा' अग्नि के रूप पर मोहित होकर उसका
मृत्यु की मंगल यात्रा-90