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-: भुमिका :
इस ' अद्भुतनवस्मरण ' की रचना पूज्य आचार्य म. श्री १००८ श्री घासीलालजी म. सा. कर्मजनित दु:खदैन्य आदि से सन्तप्त मानवसमुदाय के दुःखविमुक्तिनिमित्त की है। इस समय भौति वाद की अधधूंधी में मानव मानस पीडित होकर नितांत संतप्त हो रहा [; अतः मानव मानस की दृढता के लिये मानसिक आलम्बन का होना इस समय बहुत जरूरी है । यह आलम्बन तो सर्वोपरी प्रभुतीर्थङ्कर ही हैं, उन्हीं की आराधम से मनोबल की दृढता प्राप्त कर मानवसमुदाय ऐहिक पारलौकिक सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर सकता है ।
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इसलिये 'बहुजन हिताय ' जो इस अद्भुतनवस्मरण * की रचना पूज्यश्री ने की है, उसके स्वाध्याय से भव्य जन दृढ मनोबल प्राप्त कर ऐहिक, पारलौविक सुख के भागी बने, यहीं हमारी आन्तरिक सद्भाबना है ।
-प्रकाशक