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हे सभी सुख और साम्राज्यको देनेवाली ! मुझे तीनों लोकोंकी सम्पत्ति दो, हिरण्यों से, सुवर्णो से, सिद्धियों से, सौभाग्यों से, श्रेष्ठ सभी सामग्रियों से, सभी भोंगों से और सभी उपभोगों से मेरे कोष और कोठारोंको भरो, पूर्ण करो ।
मूलविद्याॐ नमिऊण असुरसुरगरुलभुयंगपरिवंदिय गयकिलेसे । अरिहा सिद्धायरिय उवज्झाय सव्वसाहुणो ॥ ___ॐ ही नमः धनदपुत्रि जगत्सवित्रि अष्टसिद्धिप्रधानमहानिधान सुवर्णकोटि रत्नकोटि शतसहस्र संपन्ने आगच्छ २ भगवति मम गृहे मम पुरे प्रविश प्रविश मम अक्षीण सर्वधनं धारारूपेण वर्षय वर्षय ।