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(3) विविध प्राश्ना शास्त्रोभां मताવાયેલી સદા સુખ અને લક્ષ્મીની ધારા વહાવનાર, લૌકિક તથા લકાત્તર એ બે વિધા વિશે હવે શ્રી ધાસીલાલજી મહારાજ સાહેબ આપને उहे छे.
अनेक शास्त्रों से उद्धृत करके स श्रीधारा स्तोत्र की रचना पूज्य श्री घासीलालजी महाराज करते हैं । यह श्रीधारा सर्वदा सुख देनेवाली है, और यह लोकोत्तर और लौकिकभेद से दो प्रकार की है ॥ ३ ॥
रुचिरप्रभे रुचिरकान्ते रुचिरवर्णे रुचिरलेश्ये रुचिरध्वजे सिद्धे सिद्धिरूपे, सिद्धिधरे सिद्धिदे, पूर्णे पूर्णरूपे पूर्ण प्रभे, सूर्यकान्ते, सूर्यवर्णे सूर्यलेश्ये,