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१ / मंगल मंदिर खोलो जीवन और मरण विराट जीवन के ही दो पहलू हैं। परमात्मा की यह दो विभूतियां हैं। इनमें जीवन मनुष्य की कठोर कसौटी है, जब कि मरण उस क्षमावान परम कारुणिक की दया है। मृत्यु के समय मनुष्य को जो वेदनाएँ होती हैं, वे मृत्यु के कारण नहीं होतीं। मृत्यु में तो नींद की जितनी हो मिठास और मधुरता है। जो वेदनाएँ होती हैं, जीवन के कारण होती हैं। जीवन अपना कब्जा छोड़ना नहीं चाहता। इस लोभ की खींचातानी में वेदना पैदा होती है । मृत्यु के पास धीरज है। वह जीवन को जो चाहे करवा देती है। जीवन जब हार जाता है और अपना आग्रह छोड़ देता है तभी मरण अपने पंख फैलाकर प्राणी को अपनी छत्रछाया में ले लेता है। ___मनुष्य जीवन को सुखस्वरूप मानता है और मरण की ओर महासंकटरूप के रूप में देखता है। किन्तु प्रकृति में जिस तरह दिन के बाद रात्रि के लिए स्थान है, उसकी उपयोगिता और सौंन्दर्य ही नहीं, बल्कि उस का वैभव भी है, उसी तरह मरण में भी उपयोगिता, सौंदर्य और वैभव है । मरण की उपयोगिता शायद हमारी समझ में तुरन्त न आये; किन्तु उसकी भव्यता और उसकी उपकारक सुन्दरता तो सहज ध्यान में आनी ही चाहिए । अकुलाये हुए मनुष्य के ध्यान में वह नहीं आती, यह मरण का दोष नहीं है। ___ थका-मांदा मजदूर विश्राम चाहता है। खेल-कूदकर थका हुया बालक नींद चाहता है। पका हुआ फल जमीन में अपने आपको गाड़कर नयी यात्रा शुरू करने के लिए वृक्षमाता से