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________________ १२० : परमसखा मृत्यु हीन लोक मिला । पुत्रों का जैसा अनुशासन होगा, वैसा लोक पिता को मिलेगा। इस वास्ते अपने मरणोत्तर कल्याण की इच्छा रखनेवाले को चाहिए कि वह अपने औरस और सांस्कृतिक पुत्रों को उत्तमोत्तम शिक्षा और अनुशासन प्रदान करे । अप्रैल, १९५८ २१ / पुनर्जन्म की उपयोगिता पुनर्जन्म पर हमारे देश के लोगों का विश्वास इतना गहरा है कि उसके बारे में किसी के मन में संदेह होना असम्भव-सा मालूम होता है । पुनर्जन्म है, यह सिद्ध करने के लिए हमारे पास कोई सबूत नहीं है । पुनर्जन्म नहीं है, यह सिद्ध करना भी आसान नहीं है। मनुष्य को मृत्यु का नित्य दर्शन होता रहता है। जितने पैदा होते हैं, वे सब मरते ही हैं । इसमें कोई अपवाद नहीं है, यह अनुभव की बात है। फिर भी जीवन-सातत्य पर मनुष्य की जो श्रद्धा है, उसमें किसी तरह की कमी नहीं हुई है। ____जीवन-सातत्य पर मनुष्य की श्रद्धा जिस कदर है, इसीलिए उसकी पुनर्जन्म पर विश्वास रखने की इच्छा होती है। उसे लगता है कि पुनर्जन्म होना ही चाहिए। इस खयाल को लेकर हम चलेंगे, तभी हमें एक तरह से अमरता मिल सकेगी । पुनजन्म की कल्पना के आधार पर ही हम कार्य-कारण भाव और कर्म का सिद्धान्त सिद्ध कर सकते हैं। यह भी एक सुविधा ही है और पुनर्जन्म पर मनुष्य का एक दफे विश्वास बैठ गया कि उसे लगता है, अब दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता। सत्य की एक व्याख्या यह है कि उसके विरुद्ध की कोई भी बात गले उतरती ही नहीं। ___ इतना तो सही है कि पुनर्जन्म की कल्पना को लेकर चलने
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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