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आप! आप-पान खाकर थूक देते हैं, आप-सिगरेट का कश लगाकर फेंक देते हैं, आप-मदिरा पीकर झूम लेते हैं।
इन सबका आनन्द क्षणिक ही होता है। परन्तु अच्छी पुस्तकें देव तुल्य होती हैं जिनके स्वाध्याय व मनन से मानसिक उन्नति होती है और रुचि के अनुसार लाभ की दिशा भी सुझाती हैं। इस परम सत्य को प्रमाणित किया है योगीराज यशपाल 'भारती' के सत् साहित्य ने। आप भी उनके सत् साहित्य को पढ़कर आम के आम और गुठलियों के दाम' वाली कहावत को समझ पायेंगे।