________________
[17]
स्वप्प-विषय पर फ्रायड की बात की जाये तो जुंग की बात भी कहनी होगी। यूँ तो अनेकों विद्वानों ने इस विषय पर शोध किया है। एडलर मानता है कि स्वप्न में मनुष्य की आत्मप्रतिष्ठापन की इच्छा की सन्तुष्टि होती है। जुंग मानता है कि स्वप्न वर्तमान कठिनाईयों के फलस्वरूप होते हैं। इन समस्त विद्वानों ने व्यक्तित्व को जानने के लिये स्वप्न-समीक्षा का सहारा लिया है।
स्वप्न और उसके फल व कारण जानने वाला व्यक्ति यथार्थ में समाज को बहुत लाभ प्रदान करता है । स्वप्नों के द्वारा रोग परीक्षण इतना शीघ्र होता है कि अन्य प्रकार से ऐसा सम्भव नहीं है।
__हमारे भारत में वैद्यक-प्रथा अत्यधिक प्राचीन है और इसमें सबसे बड़ा योगदान नब्ज से रोग-परीक्षा करना है। इस कार्य में बड़ी ही तल्लीनता व सोच-समझ की आवश्यकता है। हम यदि रोगी से उसके स्वप्न पूछ लें तो रोग निर्धारण शीघ्र हो जाता है। क्योंकि जिस व्यक्ति में वायु प्रकोप हो रहा होगा वह आँधी देखता है, अंधेरा देखता है, श्मशान, राख, कोयल, हवा, हवा में उड़ना, उड़ते हुए परिन्दे आदि के स्वप्न अधिक देखेगा। जिस व्यक्ति में पित्त प्रकोप हो रहा हो तो वह प्रकाश, प्रकाशमान स्थितियाँ, चमकते-दमकते रत्नादि, स्वर्ण, पीतल देखता है । इसी प्रकार जिन लोगों को कफ का प्रकोप होता है वह लोग पानी, सफेद वस्त्र, सफेद इमारत, नदी, समुद्र, सरोवर, तैरना, नहाना आदि प्रकार के स्वप्न देखते हैं।
हमारे आयुर्वेद में रोगों की उत्पत्ति के तीन ही कारण माने गये हैं जिन्हें वात, पित्त व कफ कहते हैं । वैद्य नाड़ी पर तीन अंगुली रखकर उसकी चाल से यह दोष देखते हैं, जबकि स्वप्न समीक्षा से यह निर्णय अतिशीघ्र हो जाता है।
रोगों के दोष प्राय: स्वतन्त्र अवस्था में एक ही प्रकार के नहीं पाये जाते बल्कि वात-पित्त. वात-कफ, पित्त-कफ के संयोग से रोग-लक्षण