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NĀGĀNANDA བླ་མའི་ ཞབས་ཀྱི་ རིམ་གྲོ་བྱིན་པའི་ བདེ་བ་ ཡོངས་སུ་བཏང་ནས་ ___ गुरु- चरण- परिचर्या- सुखं परित्यज्य ཇི་ལྟར་ ཁྱིམ་དུ་ འཇུག་པརབྱེད ___ कथं गृहे प्रविशामि 14
अथवा कथमहं गुरुचरणपरिचयांसुखं परित्यज्य गृहे तिष्ठामि ।" ཇེ་ལྟར་ སྤྲིན་གྱི་བཞོན་པ་ བཞིན། དབང་ཕྱག་ རིམ་པ་ས་ འོངས་ བཏང་སྟེ ། यथा जीमूतवाहनः ऐश्वयं क्रम- आगतं त्यक्ता। པ་མའི་ སྲིད་ན་ སྒྲུབ་པའི་ ཕྱིར ། བདག་ ཀྱང་ ནགས་སུ་ འགྲོབར་ བྱ།།4 पित्रोः शुश्रूषां विधातु अहम् अपि वनं यामि ॥
पित्रोविधातुं शुश्रूषां त्यक्तेश्वर्य क्रमागतम्। वनं याम्यहमप्येष यथा जीमूतवाहनः ॥४॥
[सम बापरे ॥
. [निष्क्रान्तो। *आमुखम् ।' [ དེ་ནས སྤྲིན གྱི་བཞོན་པ་ དང་ ། བི་དྲ ་ཥ་ཀ་ དག་ ཞགས་ཏེ ། [ततः जीमूतवाहनः च विदूषकः प्रविशति ।
འདྲེན་པོས །] नायकः।]"