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མཆིས་ཏེ1 ། འདི་སྐད་དུ་ མཐོང་བར་༠ འཚལ་ལོ་” ཞེས་
LALITAVISTARA
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[ 102. 7 ] अथ खलु असितो एवम् आह ।1 गच्छ' त्वं' भोः' द्वारे ऋषिर् व्यवस्थित' इति ॥ 2
प्रतिश्रुत्य 10 येन 13 राजा" शुद्धोदन उपसंक्रम्य 16 च17 * कृत ' ' अञ्जलि' "पुटो आह 23 I यत् खलु देव 24 जानीया' 5 महलुको 30 द्वारि 20 स्थितः 31 | काम 37 इति ॥ 3 38
|
6
एवं 32 च वदति
3 ततः,
33
བདག་ ནི་ རྒྱལ་པོའི་* ཞལ་༠༠
མཆིད
39 " 3
: महर्षिर 2 दौवारिकम्' उप ' संक्रम्य पुरुष' राज्ञः 5 शुद्धोदनस्य' निवेदय । दौवारिको ऽसितस्य महर्षेः 7 12 तेन 14 * उपसंक्रामद्" | राजानं 2
20
शुद्धोदनम् 1 एवम् "
21
ऋषिर् 27 जीर्णो 2"
9
34
9
" राजानम्
9 एवं 35 lit. मुखं.
5
8
15
དེ་ནས་ རྒལ་པོ་ ཟས་གཙང་མས་ དྲང་སྲོང་ ནག་པོའ ི་ སྟན་o འདིང་དུ་” བཅུག་ སྟེ" ༎ མི་" དེ་ལ་" འདི་སྐད་ཅེས་”སྨྲས་སོ༎ དྲང་སྲོང་༢༠ དེ་‘༦ ནང་དུ་འོང་བར་ གྱིས་ཤིག ། 4 དེ་ནས་ མི་ དེ་ རྒྱལ་པོ་འི་༣ ཕོ་བྲང་ནས་ བྱུང་ནས ། དྲང་སྲོང་7ནག་པོ་ལ་ འདི་སྐད་ཅེས་” སྨྲས་༠ དེ ། ནང་དུ་
4 सः, एवम्, 6 करोमि, 6 इति,
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བཞུད་ཅིག‘ ༎
अथ राजा शुद्धोदनो ऽसितस्य महर्षेर् ' आसनं * पुरुषम् एवम्" आह" । प्रविशतु 15 ऋषिर् 13 इति ॥ 4
*
"
वृद्धो 28
अहं 33 द्रष्टु- 36
5
* प्रज्ञाप्य 7,8 तं 10
अथ स पुरुषः