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दफा ७१.]
स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद
विधवा द्वारा अधिकारका छोड़ा जाना, अधिकारका मुन्तकिल करना है यह निस्सन्देह एक प्रकारका इन्तकाल है-शिवनन्दनसिंह बनाम जैरामसिंह 27 O. C. 378, A I. R. 1925 Oudh. 78.
एक समानही कई भावी वारिसोंमें से किसी एकहीके हकमें समर्पण नाजायज़ है-बच्चू पांडे बनाम मु० दूलम्मा A. I. R. 1925 All. 8. .
जब कोई हिन्द विधवा अपनी जायदादको सबसे नजदीकी भावी वारिस के हकमें समर्पित करती है तो उसकी परवरिश और सकूनतकी शर्ते उसके समर्पणके जायज़ होने में बाधक नहीं होतीं, बशर्तेकि समर्पण कानूनी है और वह केवल भावी वारिसोंमें जायदादके तकसीम कर लेनेका है महज़ प्रबन्ध न हो-अभयपादा त्रिवेदी बनाम रामकिङ्कर त्रिवेदी 89 I. C. 770.
एक हिन्दू विधवाने अपने पतिकी समस्त गैर मनकूला जायदाद सब से नज़दीकी भावी वारिसके हकमें समर्पित कर दिया। उसने एक रहनेका घर और कुछ मनकूला जायदाद जिसके बाबत यह सन्देह था कि आया यह भी उसने अपने पतिसे ही पाया है, रख छोड़ा। समर्पणमें यह भी शर्त थी कि उसे कुछ सालाना नकदी और कुछ गल्ला उसकी परवरिशके लिये दिया जाया करेगा। तय हुआ कि समर्पण बिलकुल जायज़ था-गोपालचन्द्र दत्त बनाम सुरेन्द्रनाथ दत्त 86 I. C. 804; A. I. R. 1925 Cal. 1004.
विधवा अपनी समस्त जायदादका हक़ीकी समर्पण सबसे नज़दीकी भावी वारिसके हकमें कर सकती है। इस प्रकारके समर्पणके लिये किसी खास जाब्ते की ज़रूरत नहीं है-जी० कोटीरेड्डी बनाम सुब्बा रेड्डी A. 1. R. 1925 Mad. 382.
भावी वारिसको हिबः--जायज़ है या नहीं, देखो इन्द्रनारायण मन्ना बनाम सर्वस्व दासी 41 C. L. J. 341; 87 I. C. 930; A. I. R. 1925 Cal. 743.
दो लड़कियोंमें से एकका त्याग--ऐसी दो पुत्रियोंमेंसे, जिन्होंने अपनी पिताकी जायदादको वरासतसे पाया था,एक पुत्रीने अपने हिस्सेकी जायदाद का इन्तकाल किया और मर गई। पीछेसे दूसरी पुत्रीने एक दस्तावेज़ दस्तबरदारी बहन एक नज़दीकी भावी वारिसके लिखा,और उसके जीवनके समय में ही, एक व्यक्तिने उसके द्वारा अधिकार बताते हुये, मृत पुत्रीके इन्तकाल को मंसूख करना चाहा। तय हुआ कि वह जीवित पुत्रीके जीवनकालमें वैसा करनेका अधिकारी नहीं है-नीलकान्ति सुन्दर शिवराव बनाम बीअम्मा 22 L. W. 398; (1925) M. W. N. 643; 48 Mad. 933; A. 1. R. 1925 Mad. 1267; 49 M. L.J. 266.