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दफा ७४-७०६]
स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद
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कर सकती है। सुबामन्यचेट्टी बनाम रामकृष्णम्मा 84 I. C. 868, A. I. R.. 1925 Mad. 403. दफा ७०५ एक पतिकी दो विधवाएं
एक पतिकी दो विधवाओं में से एक विधवा दूसरी विधवाके हिस्से, और अपने पश्चात् होनेवाले वारिसके हकका अगर इन्तकाल करदे तो यह ज़रूरी नहीं है कि वह इन्तनाल अवश्यही नाजायज़ होजाय, 30 Mad. 3. दफा ७०६ कानूनी ज़रूरतें कौन हैं ? • जायदादका इन्तक़ाल करनेके लिये नीचे लिखी ज़रूरतें कानूनी ज़रू, रते हैं ऐसी ज़रूरतें होनेपर इन्तकाल जायज़ होगा । (१) धार्मिक कृत्येअपने पति या दूसरे पूरे मालिकका क्रियाकर्म, श्राद्ध, और वार्षिक रस्म अदा करना कानूनीज़रूरते हैं, देखो-मोतीराम कुंवर बनाम गोपालसाह11B.L.R: 416; 20 W. R. C. R. 1877 लक्ष्मीनारायण बनाम दासू 11 Mad. 2887 चुम्मनलाल बनाम गनपतिलाल 16 W. R.C. R:527 जन्मेजय बनाम संसो. मेयो 1 B. L. R. 418; ततैय्या बनाम रामकृष्णमुरा 34 Mad. 288. .
उस कर्जकी अदाई जो एक आवश्यक घरके बनानेके लिये,पहिले लिया गया था, और जितकी मन्शा भावी वारिसोंको धोखा देने की न थी-भावी वारिसों पर पाबन्दो है । लाभू बनाम सवनसिंह 97 Punj. L. R. 26, A. I. R. Lah. 252.
इन्तकालके क़ानूनी साबित करनेके लिये भावी वारिसों की रजामन्दी की शहादत, सेबसे अधिक कानूनी और प्रस्तावजनक शहादत है । सुमित्रा बाई बनाम हिरबाजी A. I. R. 1927 Nagpur 28.
कानूनी आवश्यकताके लिये जायदादके इन्तकालके सम्बन्धमें,विधवाका वहीअधिकार हैं, जो किसी पारिवारिक जायदाद मेनेजरको होता है। किन्तु उनका उपयोग केवल आवश्यकताके समय या जायदादके लाभके लिये किया जा सकता है। किसी खास मामलेमें जायदादपर किसी मान्य कर्ज़का होना, किसी खास खतरे को टालनेकी व्यवस्था या जायदादके लिये किसी खास लाभका होना, ये बातें हैं जिनपर ध्यान दिया जाना चाहिये। यह कोई प्रश्न ही नहीं है कि आया वह अपनी परवरिशके लिये, या अपने धार्मिक रिवाजों के खर्च के लिये, या अपने पतिकी आत्मिक उन्नतिके इन्तकाल कर सकती है, हां! वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्तिको सबसे आगे बढ़ाने की अधिकारिणी नहीं है।
शब्द "आवश्यकता"के कुछ विशेष या कानूनी अर्थ हैं। 'आवश्यकता' का अर्थ विवशता ही नहीं है बल्कि ज़रूरत या एक प्रकारका दबाव है, जिसे
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