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- स्त्रियों के अधिकार -
[ग्याररवा प्रकरण
अपने खर्च में लानेके लिये या उनके द्वारा किसी प्रकारकी आमदनी प्राप्त करने के लिये हासिल किया था, ताहयात अधिकारिणी थी किन्तु उसने वसीयत द्वारा उन प्रामिज़री नोटोंका जो कि रक्रमके स्वरूपमें नाबालिग पुत्रकी मृत्यु के पूर्व कोर्ट आफ वार्ड्ससे प्राप्त हुये थे न पृथक किया था । उसने केवल उन प्रामिज़री नोटों के सम्बन्धमें वसीयत किया था, जिनकी वह पूर्ण अधिका.. रिणी थी और जिन्हें उसने अपने पुत्रकी मृत्युके पश्चात् कोर्ट श्राफ वार्डसे जबकि वह बहैसियत रिसीवरके थी प्राप्त किया था। उसके वसीयतका वही एक मान्य और न्याय पूर्ण कारण था और वसीयतनामा इस वजहसे नाजायज नहीं हो सकता कि उसे इन्तकालका अधिकार न था--वेकटद्री अप्पाराव बनाम पार्थ सारथी अप्पा 48 Mad. 312; 23 A. LJ. 2613 L. R. 6 P. C. 82, 52 1. A. 214, 27 Bom. L. R. 823; 87 I.C. 324;(1925) M W.N. 44113 Pat. L. R. 288929 C. W. N. 989, A. I. R. 1925 P. C. 1057 48 M. L.J. 627 (P.C.) - विधवापर इस बातकी पाबन्दी नहीं है कि पतिका कर्ज, पतिकी जायदादकी शामदनीसे अदा करे-विश्वनाथ बनाम रामनाथ 12 0. L.J. 4067 20. W. N. 522; 81 I.C. 581; A. I. R. 1925 Oudh 529. .
श्रामदनी से पैदा की हुई जायदाद-बचत से पैदा की हुई जायदाद, अधिकारी की जायदाद है-हरीहरप्रसाद सिंह बनाम केशव प्रसाद सिंह 13 I.C. 454.
आमदनीको खर्च करना और कर्ज चुकानेके लिये कर्ज लेना-हिन्दूला के अनुसार हिन्दू विधवाको पूर्ण अधिकार है कि वह उस आमदनीको जो उस जायदादसे प्राप्त होती है जिसकी कि वह अपने पति की कारिसकी भांति अधिकारिणी है, खर्च करे। उसको अधिकार है कि उसे सम्पूर्ण नर्चकर डाले, और कुछ भी न बचावे । यदि विधवा कुल आमदनी अपने खर्च में लगाले और अपने पतिके कर्जको चुकाने के लिये कर्ज ले तो उसका यह कार्य न्यायपूर्ण होगा, और यदि उसने उस कर्जको चुकानेके लिये कर्ज लिया है तो भावी वारिसोंको उसे चुकाना होगा।
हिन्दलों के अनुसार हिन्दू विधवापर अपने पतिके कर्जको चुकानेकी पावन्दी है इस प्रकारकी अदाई पति की आत्मिक उन्नतिके लिये है 30 B. 113; 21 C. 190. Rof. अतएव जहां कहीं कोई विधवा अपने पतिका कर्ज चुकाने के लिये, पति द्वारा प्राप्त जायदादका इन्तकाल करती है वहां किसी प्रकारकी आवश्यकता या दवावका प्रश्न नहीं उठता-ठाकुर विशुनाथ बनाम रामरतन 12 0. L. J. 4063 20. W. N. 522; 89 I.C. 581; A. I. R. 19250udh 529.