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वरासतसे मिली हुई जायदादपर स्त्रियोंका अधिकार
ग्यारहवा प्रकरण
दफा ६८२ वारिसकी हैसियतसे स्त्रियोंका अधिकार महदूद है ( १ ) सिवाय उन सूरतोंके जो इस किताबकी दफा ६४०, ६४१ में कही गयी हैं, वरासतसे मिली हुई जायदादपर किसी हिन्दू 'स्त्री' का पूरा अधि कार नहीं होता; चाहे वह जायदाद उस स्त्रीको किसी पुरुषसे मिली हो अथवा किसी स्त्री । पूरा अधिकार न होनेका अर्थ यह है कि जब किसी स्त्रीको, पुरुष या स्त्रीके मरनेके बाद वारिसकी हैसियतसे मृत ( पुरुष, या स्त्री ) की जायदाद उत्तराधिकारके द्वारा मिली हो तो उसपर स्त्रीका वैसा अधिकार नहीं होता जैसाकि उस जायदादके पूरे मालिकको था; यानी वह स्त्री अपनी मरज़ी से उस जायदादका दान नहीं कर सकती, बेच नहीं सकती, रेहन नहीं कर सकती और न किसी दूसरी तरहसे इन्तक़ाल कर सकती है। मगर वह क़ानूनी ज़रूरतोंके लिये ऐसा कर सकती है, देखो दफा ६०२. यह बात हिन्दूलॉके सभी लिखने वालोंने मानी है कि वरासतसे पाई हुई जायदादका इन्तकाल कोई स्त्री नहीं कर सकतीः कारण यह है कि स्त्रीसे वरासतकी कोई नई शाखा नहीं निकलती, इसीलिये स्त्रीके मरनेके बाद जायदाद उस आदमी के पास चली जाती है जो पिछले आखिरी पूरे मालिकका वारिस होता, अगर वह स्त्री बीचमें न होती। नज़ीरें देखो बनारस स्कूल जहां लागू किया गया था शिवशङ्करलाल बनाम देबीसहाय (1903) 30I. A. 202; 25 All. 468; 7 C. W. N. 831; 22 All. 353. शिवप्रताप बहादुरसिंह बनाम इलाहाबाद बेङ्क 30 I. A. 209; 25 All. 476; 7 C. W. N. 840; 5 Bom. L. R. 833. छोटेलाल बनाम चुन्नूलाल 6 I. A.15; 4 Cal 744; 3 C. Lo R. 465; 14 B. L. R. 235; 11 M. I. A. 139. मदरास स्कूल जहांपर लागू किया गया था वेङ्कट रामकृष्णराव बनाम भुजङ्गराव 19 Mad. 107; 19 Mad. 110; 3 Mad. H. C. 312; 29 Mad. 358. बङ्गाल स्कूल जहां पर लागू किया गया था -- प्राणकृष्ण बनाम नवमनी दासी 5 Cal. 222. हरि