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रिवर्जनर
[दसवां प्रकरण
. ऐसी सूरतमें जबकि पति ज्यादा सूदपर क़रज़ा लेकर मरगया हो और विधवाने कम सूदपर करज़ा लेकर उसे अदाकर दिया हो तो भी कम सूद के करज़ा देनेवाले को यह साबित करना पड़ेगा कि उसने कानूनी ज़रूरत के लिये करज़ा लिया था और जो बातें ऊपर बतायी गयी हैं सब साबित करना होंगी। दूसरे पक्षको यह साबित करने की ज़रूरत नहीं है कि पति जो जायदाद छोड़ गया था उससे कर्जा चुकाया जा सकता था-231, A. b7; 23 Cal. 266.
इन्तकालके बाद यदि अधिक समयतक उसपर आपत्ति न की जाय तो इस सबबसे वह व्यक्ति कोई लाभ नहीं उठा सकता है कि जिसके ज़िम्मे सुबूत दरअसल डाला गया है। हां यह हो सकता है कि उतने दिन बीतने के कारण यदि कुछ कम सुबूत हो जाय तो अदालत इस बातपर विचार करेगी और यह भी होसकता है कि उतने दिनों तक चुप रहने के कारण अदालत उनकी मंजूरी होना अनुमान करे 38 Cal. 721. दफा ६७७ जब क़ानूनी ज़रूरतका कुछ हिस्सा साबित कियाजाय
जव कानूनी ज़रूरत का कुछ हिस्ला साबित कियाजाय और यह विदित हो कि उस आदमीको जिसे इन्तकाल किया गया यह मालूम था या वह जांच करके यह मालम करसकता था कि जरूरतसे ज्यादा रुपया लिया गया है तब यह कम रकम जिसकी वास्तवमें ज़रूरत थी देकर जायदाद छुटाली जायगी -25 All. 330; 33 Cal. 1079; 34 I.A.72, 29 All. 331:9 Bom. L. R. 591; 13 W. R.C. R. 457; 27 All. 494.:
___ या अगर जायदाद बेच दीगयी होतो वही रक्कम सूद सहित देकर बिक्री खारिज करदी जायगी और यदि इस बीचमें इन्तकाल वाला उस जायदादपर काबिज़ रहा हो तो उतने दिनका मुनाफा उसमें मुजरा दिया जायगा-डिपुटी कमिश्नर आफ् खीरी बनाम खानजनसिंह 34 I. A. 72529 All. 331; 11 C.W.N. 474; 9 Bom. L. R.591.
हरीकिशुनभगत बनाम बजरंगपहायसिंह 13 C. W. N. 544. 549 के मुक़द्दमे में कहा गया है कि प्रिवी कौन्सिलने डिपुटी कमिश्नर श्राफ खीरी बनाम खानजनसिंह 34 I. A. 72; 2 I. All. 331; 11 C. W. N. 474; 9 Bom. L. R. 591 के मामले में यह माना है कि कानूनी ज़रूरत साबित न होनेसे अगर विधवाकी बची हुई जायदादका कुछ हिस्सेका बेचना नाजायज़ साबित हो तो कुल बिक्री रद करदी जायगी और जितने दिनोंतक खरीदार काबिज़ रहा हो उतने दिनोंके मुनाफेका उसे हिसाब देना होगा।
मि० ट्रिवेलियन् कहते हैं कि प्रिवी कौंसिलने उक्त नियम सर्वव्यापी नहीं मान लिया है एक दूसरे मामले में अर्थात् फेलाराम बनाम बगलानन्द