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रिवर्जनर
[ दसवां प्रकरण
इस बात के प्रतिपादन के लिये कोई सिद्धान्त नहीं है, कि अधिक दूर | के सम्बन्ध का भावी वारिस, उस सूरत में जब कि सबसे नज़दीकी वारिस नाबालिगहो, नालिश कर सकता है। अधिक दूरका भावी वारिस बतौर नाबा - लिग्रके वलीके नालिश कर सकता है, कालीचरणसिंह बनाम बागेश्वर कुंवरि 23 A. L. J. 653; 89 I. C 374; A I. R. 1925 All. 585.
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भावी वारिस द्वारा नालिशमें प्रश्न यहथा कि आया फैसलेकी पाबन्दी दूसरे भावी वारिस परभी है ? माताप्रसाद बनाम नागेश्वरसहाय 3 O. W. N. 11 L. R. 6 P. C. 195; 52 I. A 398; 28 O. C. 352; A. I. R. 1925 P. C. 272; 50 M. L. J. 18 ( P. C.).
इस इस्तक़रारकी नालिश कि बयान कियाहुआ दत्तक नाजायज़ है मुद्दालेह पर दत्तक के जायज़ होने के सबूतकी जिम्मेदारी है- लक्ष्मन बनाम मूला
A I. R. 1925 Nag. 61.
एक पहिले मुक़द्दमे में विधवा और वे व्यक्ति जिनके हक़में इन्तक़ाल किया गया था, इस बातको न साबित करसके कि मुद्दई भावी वारिस न था । पीछेसे पहिले मुक़द्दमेके मुद्दई के पुत्रने विधवा और कुछ दूसरे व्यक्तियों के खिलाफ जिनके हक़ में उसकी जायदादका कुछ इन्तक़ाल किया गयाथा, नालिश किया। तय हुआ कि पीछेके मुक़द्दमेके मुद्दालेह इस अधिकारसे महरूम न थे कि वे यह एतराज करें, कि उस मुक़द्दमेका मुद्दई ठीक दूसरा भावी वारिस न था - कालीचरन बनाम बागेश्वर कुंवारी 23 A. L. J. 653; 89 I. C. 374; A. I. R. 1925 All. 585.
नोट- जब दूर के रिवर्ज़नर को ऐसा करना हो तो उसे चाहिये कि पहिले के सब रिवर्जनरों को मुद्दालेह बनावे और दावेमें वह सब बातें बतादे कि जिनसे उसे ऐसा करना पड़ा, वह यदि ऐसा न करेगा तो सम्भव है कि मुकद्दमा खारिज हो जाय ।
निःसन्तान हिन्दू विधवाने नाजायज़ तौरसे कोई जायदाद बेच दी हो और उसके बादका रिवर्ज़नर उस बिक्रीके खारिज करानेका दावा करनेमें देर करे, तो इससे यह नहीं समझा जायगा कि उसने वह बिक्री मंजूर करली थी । अगर मंजूर की भी हो तो यह मंजूरी ऐसी होना चाहिये, कि जिसके कारण यह रिवर्जनर उस बिक्रीपर कोई आपत्ति करनेका अधिकारी न रह गया हो । ऐसी सूरत में उसके बादका रिवर्जनर अदालतमें दावा करके उस बिक्री को मंसूख करा सकेगा, देखो -- 6 All. 431-434; 4 N. W. P. 83.
दफा ६७२ रिवर्ज़नर के बादवाले रिवर्ज़नरके दावाकी मियाद
पहिले रिवर्जनर के दावा करनेमें क़ानून मियादकी पाबन्दी हो सकती है यानी उसमें तमादी हो सकती है परंतु उस तमादी हो जाने से दूसरे रिव