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[ नवां प्रकरण
पुरुषकी जायदाद पहले उसके लड़के, पोते, परपोते, पावेंगे पीछे विधवा, लड़की, लड़की का लड़का पावेगा पीछे उसकी ( मृत पुरुष की ) मां, बाप, भाई, भाई का बेटा, भाई का पाता पावेगा उसके बाद दादी और दादी के न होने पर दादाको जायदाद मिलेगी, अब इस नये कानून के प्रभाव से दादा के न होनेपर लड़केकी लड़की, लड़की की लड़की, बहन और बहनका लड़का क्रमसे जायदाद पावेगा इनका क्रम ऐसा है कि जब पहला न हो तो दूसरे को क्रम से मिले । अर्थात् लड़के की लड़की न होने पर लड़की की लड़की को मिलेगी इसीतरह एकके न होनेपर आगे के दूसरे वारिस को जायदाद मिलेगी । जब इतने वारिस न देंगे तब बाप के भाई (चाचा) को जायदाद मिलेगी और फिर वरासत का क्रम वही रहेगा जो हिन्दूलों में पहले बताया इस कानून में ३ स्त्रियों को और १ पुरुषको अधिक वारिस माना गया है । इन सबके अधिकारों के बारे में कानून में साफ कर दिया गया है कि जिस स्कूल के अन्तर्गत जिस प्रकार स्त्रियों को जायदाद में इक प्राप्त रहते हैं उतने ही रहेंगे और पुरुषों को जो प्राप्त होते हैं उनको वैसे ही रहेंगे जहां पर 'प्राइमोजेनीचर' का कानून माना जाता है अर्थात वरासत का वह नियम जिसके अनुसार जेष्ट पुत्रही अपने पिता की जायद का मालिक होता है दूसरे पुत्र वारिस नहीं होते वहां पर वहीं कानून माना जायगा इस नये कानून से उसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा ।
गया है ।
बहन का दत्तक पुत्र - इस क्रानून में एक नियम विशेष ध्यान में रखने योग्य है कि जब बहन वारिस है। और उसके मरने के बाद जायदाद फिर उसके भाई के पूर्वजों की लाइन में जाने वालीहो जब कि बहन के कोई लड़का न हो। ऐसी दशा में यह नियम किया गया है कि बहन का गोद लिया हुआ लड़का उत्तर धिकारी हो सकेगा अगर बहन के मरने के बाद बहनके पतिने गोद लिया हो तो वह वारिस न होगा | गोद लेने का व्यापक सिद्धान्त यह है कि लड़का पुरुष के लिये गोद लिया जाता है ताकि उसके वंशकी वृद्धिहो उसकी धर्म शास्त्रीय क्रियायें होती रहें और उसका नाम चलता रहे। पहला अधिकार पुरुष का है जो गोद ले सकता है मगर इस कानून के मतलब के लिये गोद का पुत्र वही समझा जायगा जो बहन के जीवन में लिया गयाहो । गोद, बहनके पति के लिये लिया जायगा बहनका पति लेगा, मगर शर्त फिर इतनी है कि बढ्न जीवित हो । बहन के मरने के बाद गोद के लड़के को वह वरासत न मिलेगी । यह नियम क्यों किया गया ? - इसके कई जवाबहो सकते हैं । पहला जवाब यह है कि भाई और बहिन में माता पिता के शरीर के अन्श समान रहते हैं । सपिण्ड के वास्तविक सिद्धान्त के अनुसार बहन-भाई के शररि एकही स्थान से जन्मे होते हैं इस लिये भाई का जितना हक दाता है उतना ही बहन का । हक़ क़ानूनी नहीं बल्कि प्राकृतिक । स्त्री और पुरुष का केवल शरीर भेद होता है । इसलिये भाई के मरने के बाद जब जायदाद बहन के पास जाती है तो उसके सपिण्ड के ख्याल से जाती है जब तक बदन जीवित है वह सपिण्ड बना रहता है उसके मरने पर उसके सन्तान में क्रमागत न्यून होता जाता है। मगर जब बहनकी सन्तानही न हो तो उसकी समाप्ति उसी जगह हो जाती है । इतीसे बहनकी जिन्दगी में गोद लेने की बात विशेष रूप से कहदी गयी है । क्योंकि गोद लेने से, असली लड़क का भाव उसमें भी आ जाता है इसी से मान लिया जाता है कि वह उसका लड़का है । बहन के मर जाने पर उसके पुत्रत्व के भावकी लाइन नाशहो जाती है इसी से बहन के जीवनकाल में गोदके पुत्रको इस कानूनने इक्र दिया है । मेरी राय में यह बात आगे समय पाकर फिर संशोधित होगी और यह नियम शिथिल कर दिया जायगा किन्तु तब तक यही माना जायगा ।
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उत्तराधिकार