________________
दफा ६५८-६६० ]
उत्तराधिकारसे बंचित वारिस
८०५
लड़कियां छोड़गया, और रतनसिंह एक विधवा और लड़की का लड़का खैराती छोड़गया। दोनों विधवाओं के मरने के बाद खैराती और दौलतसिंहकी लड़कियोंके परस्पर जायदादके लिये तकरार हुई । अन्तमें इनका सुलहनामा होगया जिसके अनुसार लड़कियोंने कुल जायदाद का आधे से ज्यादा हिस्सा पाया। दफा ६६. संसार त्याग
जिस श्रादमीकी बायत साफ तौरसे यह साबित कर दिया जाय कि उसने सब सांसारिक कामोंको त्यागदिया है। अर्थात् साधू, संन्यासी, या ब्रह्मचारी हो गयाहै, तो वह वरासतसे वंचित रखा जाता है, देखो-तिलकचन्द्र बनाम श्यामाचरण प्रकाश [ W. R.C. R. 209, ऐसा आदमी यदिफिर सांसारिक कामोंमें शरीक होजाय तो वह फिर वरासत पानेका अधिकारी होजायगा, मगर शर्त यहहै कि-उसकी जायदादपर उसके बाद वाले वारिसका कब्ज़ा न होगया हो । यदि होगया होगा तो फिर वह उससे जाय दाद नहीं छीन सकता।
रामकृष्ण हिन्दूला Part 2 P. 214 में कहा है कि वह आदमी जिसने कि संसारके सब कामोंको छोड़दिया हो, और संन्यासी या नित्य-ब्रह्मचारी होगया हो, उसे उत्तराधिकारका हक नहीं मिलता । जिसने संसार बिल्कुल महीं छोड़दिया है और जो फकीर या साधुसन्त होगया है इनमें मेद सिर्फ यही है कि जिसने संसारको बिल्कुल नहीं त्यागा है, चित्तमें विराग आनेसे घरमें या दूसरी जगहपर कोई झोपड़ी या मठी बनाकर भजन करता है और अपने ज़रूरी कामोंको कभी कभी करता रहता है वह उत्तराधिकारके हकसे वंचित नहीं रस्त्रा जासकता । यदि कोई हिन्दू फ़कीर या साधुसन्त भी होगया, किन्तु उसने संसारको बिल्कुल नहीं त्यागा बल्कि पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र भी पैदा हो गये हैं तो यह बात मानी जायगी कि वह कानूनी फकीर या साधुसन्त नहीं हुआ और इसलिये एक मुकदमे में ऐसी ही सूरत होनेसे अपने भतीजे की जायदादका वारिस हुआ-93 P. R. 1898; पूरे फकीर या साधूसन्तको अपनी पैतृकसम्पत्तिमें कुछ अधिकार नहीं है 1 P. R. 1868.
साधारणतः यह बात मानली जायगी कि जब बहुत दिन फकीर या साधूसन्त हुए ब्यतीत होचुके हों, देशाटन करता हो, घरसे तथा जायदादसे सम्बन्ध न रखता हो, सांसारिक कामोंको न करता हो, तो ऐसा आदमी कानूनी फकीर या साधूसन्त है।
____ 11 Indian, Cases, 373; 106 P. R. 1911 के मामलेमें जगरांवका एक अगरवाल बनियां जो 'सुथरा फकीर' हो गया था, मानागया कि उसने