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दफा ६५४-६५७]
उत्तराधिकारसे बंचित वारिस
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उदाहरण-एक आदमी मरा और उसने एक लड़का गूंगा और अपनी विधवाको छोड़ा। ऐसी दशामें गूंगे पुत्रको वरासत नहीं मिलेगी। बल्कि विधवाको मिलेगी, यदि विधवाके जीवनकालमें पुत्रका शृंगापन चला जाय
और वह बिल्कुल अच्छा होजाय तो भी पुत्र, विधवासे जायदाद नहीं छीन सकता; विधवाके मरनेपर पुत्रका हक जायदादके पानेका पैदाहोगा; चाहे बाप के भाई मौजूद भी हों। अब दूसरी तरहसे इसेयों समझिये कि-एक आदमी मरा और उसने एक अन्धा लड़का तथा एक भाई छोड़ा । ऐसी दशामें भाई जाय. दादका वारिस होगा । यदि अन्धापन उसका अपने चाचाकी जिन्दगीमें चला जाय और वह बिल्कुल अच्छा हो जाय तो वह चाचासे जायदाद नहीं छीन सकता। अब चाचा यदि अपनापुत्र छोड़कर मरे तो फिर वह जायदाद चाचा के पुत्रको इसलिये मिलेगी क्योंकि चाचा अपने जीवन कालमें उस जायदाद पर पूरे मालिककी हैसियतसे कब्ज़ा रखता था, और यदि चाचा बिना किसी दूसरे वारिसको छोड़े मरजाय तो जायदाद उसे मिलेगी जो अन्धेपनसे अच्छा हुआ है। मगर उसे अपने बापके वारिसकी हैसियतसे नहीं मिलेगी बक्ति बापके भाईके वारिसकी हैसियतसे सिलेगी। दफा ६५६ स्त्रीधन
जिन शारीरिक आरोग्यताओंके कारण स्त्री, किसी पुरुषकी वारिस होनेसे बंचित रखी जाती है उन्हीं अयोग्यताओंके कारण वह किसी स्त्रीके स्त्रीधनकी वारिस होनेसे बंचित होसकती है या नहीं इस विषयमें मतभेदहै। क्योंकि-शास्त्रमें सिर्फ पुरुषके वारिस होने के बारेमें ज़िकर किया गया है स्त्रीके बारेमें नहीं। इस विषयमें शास्त्री जी० सी० सरकार अपने हिन्दूला 3 ed. P. 333 में कहते हैं कि दोनों हालतोंमें कुछ भेद नहीं माननाचाहिये। कोई ब्याही लड़की जिसका पुत्र गूगा हो बंगाल स्कूलमें स्त्रीधन जायदादकी घारिस हो सकती है या नहीं इस प्रश्नका विचार चारुचन्द्रपाल बनाम नवसुन्दरीदासी (1891) 18 Cal. 327 के मुकदमे में किया गया और यह निश्चय किया गया कि वह वारिस होसकती है, क्योंकि यह साबित नहीं किया जासका कि उसके पुत्रका गूंगापन असाध्य है अर्थात् किसी भी वासे आराम होनेके योग्य नहीं है। दफा ६५७ बम्बईमें अयोग्य पुरुषकी स्त्री
बम्बई स्कूलमें अयोग्य हिन्दू पुरुषकी स्त्री या विधवा अपने पतिके द्वारा या दूसरी तरह वारिस हो सकती है मगर शर्त यही है कि वह खुद अयोग्य न हो, देखो-गंगू बनाम चन्द्रभागाबाई 32 Bom. 275, 10 Bom. L. R. 149; अयोग्य पुरुषकी विधवा अपने पति या अपने पुत्रकी मी वारिस हो सकती है, देखो-मेकनाटन हिन्दूला 2 ed. P. 130.