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दफा ६५०-६५१]
उत्तराधिकारसे बंचित वारिस
'पत्नीपत्युर्धनहरी या स्यादभिचारिणी'
पत्नी अपने पतिका धन तब लेगी जब कि वह व्यभिचारिणी न हो। मदरास और बम्बईकी हाईकोोटेंने माना है कि जिस समय विधवाको जायदाद पहुंचनेका हन पैदा हुआ हो उस समय वह व्यभिचारिणी न हो देखोकोजीयाडू बनाम लक्ष्मी 5 Mad. 149. बम्बई हाईकोर्टकी यह राय है कि यदि पतिके जीतेजी स्त्रीपर व्यभिचारका दोष लगाया गया हो, और पतिने माफकर दिया हो पीछे वह सच्चरित्र होगयी होतो विधवाका हक नहीं मारा जायगा 13 B. L. R. 1033; 36 Bom. 198; बंगाल और इलाहाबाद हाईकोर्ट यह मानते हैं कि वारिस होनेके समय यदि विधवा व्यभिचारिणी है तो उसे जायदाद नहीं मिलेगी। पंजाबमें जब कि स्त्री बालिग्न हो और किसी रिश्तेदारके साथ रहती हो, अथवा उसके लड़के मौजूद हों तो उसे पुरुष सम्बन्धी कुटुम्बियोंके विरुद्ध पतिकी जायदाद नहीं मिलेगी-34 P. R. 1893; 74 P. R. 1893.
(२) अदालती फैसले-व्यभिचारिणी विधवा अपने पतिकी जायदाद के वारिस होनेका हक नहीं रखती देखो-केरीकोलीटानी बनाम मोनीराम कोलिटा (1873 ) 13 B. L. R. 1-117 19 W. R.C. R. 367, लेकिन अगर विधवा व्यभिचारिणी होनेसे पहिले जायदादकी मालिक हो चुकी हो और जायदादपर चाहे उसका कब्ज़ा न हुआ होतो पीछे व्यभिचारिणी हो जानेके कारण उसका हक नहीं मारा जायगा-7 I. A. 115, 5 Cal. 778 6 C.L. R. 322; 13 B.L. R.1; 19.W. R.C. R. 367; 4 Bom. H. 0. A. C. 25; 2 All. 150; 24 Mad. 441 ; भवानी बनाम महताब कुंवर 2 All. 171.
जब अपनी स्त्रीका व्यभिचार पतिने माफ कर दिया हो तो फिर वह व्यभिचार विधवाकी वरासतमें बाधक नहीं होता देखो-गंगाधर बनाम पलू ( 1911) 36 Bom. 138; 13 Bom. L. R. 1038; (व्यभिचारको जाननेपर उसके विरुद्ध कुछ नहीं करना भी माफ' करदेना समझा जासकताहै)
भारतके जिन भागों में मिताक्षराला माना जाता है कमसे कम मदास और बंबई प्रांतमें विधवाही एक एसी वारिस है जो व्यभिचारके कारण उत्तराधिकारसे बंचित रखीजाती है तारा बनाम कृष्ण ( 1907) Bom. 415-502; 9 Bom. L. R. 774; 4 Bom. 104; b Mad 149, 3 Mad. 100; 26 Mad. 509; 1 All. 46; 2 N. W. P. 381; 32 All. 155; 5 Mad. 149; 33 All. 702 ( लड़की, माता, दादी, आदि नहीं)
स्मृतिचन्द्रिका मदरासमें अधिकमान्य है और वीरमित्रोदय बनारस स्कूलमें यह दोनोंही केवल सती स्त्रीको उत्तराधिकारिणी मानते हैं लेकिन