________________
दफा ६४६-६४६ ए]
औरतोंकी वरासत
~
~
~
~
~
~
~
wwww
बरार में पुत्रवधू वारिस होती है और उसकी बरासतको उसके पतिके चेचाज़ात भाईके मुकाबिले तरजीह दी जाती है-गनपत बनाम बुधमल A. I. R. 1927 Nag 86. दफा ६४८ विधवाओंका क्रम पतियोंके अनुसार होगा . ऊपर दफा ६४७ में नम्बर १८ के बाद अर्थात् जब इनमेंसे कोई बारिस न हो तो उसके बाद दादा वारिस होता है और उसके बाद दादाकी लाइनके पुरुष वारिस होते हैं, इस दादाकी लाइन में चाचा चाचाका लड़का, यह सब गोत्रजसपिण्ड हैं इसलिये अगर इन तीनों में से कोई न हो तो इनकी विधवायें अपने पतियों के क्रमसे जायदाद पायेंगी जैसे--
(१६ ) दादा ( २० ) चाचा (बापका भाई) (२१) चाचाका लड़का (२२) बापकी सौतेली मा (विधवा) (२३) चाचाकी विधवा (२४) चाचा के बेटेकी विधवा।
जैसा कि क्रम ऊपर बताया गया है इसी प्रकार परदादाकी लाइनमेंभी समझ लेना । मगर बम्बई प्रांतमें भाई के पोतेकी तथा चाचा के पोतेकी कौनसी जगह है, वह किसके बाद और किससे पहिले वारिस होने का हक रखते हैं यह बात निश्चित नहीं है परन्तु हर सूरतमें भाईका पोता, भाईकी विधवासे पहिले वारिस होगा और इसी तरह पर चाचाका पोता चाचाकी विधवासे पहिले वारिस होगा क्योंकि यह बात मानी गयी है कि 'विधवाओं के वारिस होने का हक़ उस वक्त तक नहीं पैदा होगा जबतक कि उनके पतियों की शाखावाले मर्द गोत्रजसपिण्ड न मरगये हों। देखो काशीबाई बनाम मोरेश्वर ( 1911 ) 35 Bom. 389सीताराम बनाम चिंतामणि 24 All. 472. दफा ६४९ मदरास प्रांतमें गोत्रजसापण्डोंकी विधवायें वारिस
- नहीं मानी जाती
इस किताबकी दफा ६४३ में जो पांच औरतें बताई गयी हैं उनके सिवाय दफा ६४१ में जो औरतें बताई गई हैं वह सब मदरास प्रांतमें वारिस नहीं मानी गयीं, देखो-कना कम्मल बनाम असन्त माथी 37 Mad 293. दफा ६४९ (ए) रंडी ( वेश्या) की वरासत
___ नर्तकी (वेश्या) स्त्रियों में जीवनके अधिकारके साथ खाम्दानी साझेदारी हो सकती है। किन्तु कोई ऐसी नज़ीर नहीं है जो यहांतक पहुंचती हो कि किसी वेश्याकी पुत्री जन्मके कारण. पैतृक सम्पत्तिकी अधिकारिणी हो सकती हो । फरीक वेश्यायें थीं । माता, पुत्री और प्रपात्री एक साथ रहीं
100