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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
(८) उक्त नम्बर ७ के अनुसार यह माना गया है कि पहले आत्मबन्धु वारिस होंगे पीछे पितृबन्धु और उसके पीछे मातृबन्धु वारिस होंगे। एक ही दर्जेके अनेक वारिसोंमें जिसका नाम पहले कहा गया है वह वारिस होंगे। दफा ६३६ बन्धओंका सामान्य सिद्धान्त बंगाल स्कूलके अनुसार
आमतौरपर बन्धुओंके लिये जो सिद्धान्त माना गया है वह यह है कि पितृपक्षके सात पूर्वजोंके हर एककी पांच डिगरी तक, और इसी तरहपर मातृपक्षके पांच पूर्वजोंके हर एककी पांच डिगरी तक जो स्त्री द्वारा रिश्तेदार होते हैं वह सब बन्धु कहलाते हैं । इसका कारण यह है-कि याज्ञवल्क्यने कहा है कि
'पञ्चमात्सप्तमादूर्ध्वं मातृतःपितृतस्तथा' [देखो दफा ५१]
इसी आधारसे अदालतोंमें ऊपरका सिद्धान्त मान कर बन्धुओंका फैलाव किया गया है। दफा ६३७ बंगाल स्कूल के अनुसार कलकत्ता हाईकोर्ट की राय ___कलकत्ता हाईकोर्टने, उम्मेद बहादुर बनाम उदयचन्द (1880) 6 Cal. 119; के मुक़द्दमे में यह करार दिया कि 'सपिण्डता एक दूसरेमें होना चाहिये। इसका नतीजा यह निकाला गया कि पितृपक्षमें पांच डिगरी तकके पूर्वज लिये गये, सात डिगरी तकके नहीं। अगर हम कलकत्ता हाईकोर्टके अनुसार बन्धुओंको निश्चित करना चाहें तो हर एक बन्धु नीचे लिखे हुए आदमियोंके पांच डिगरीके अन्दर किसी स्त्री द्वारा सम्बन्ध रखने वाला होना चाहिये।
(१) मृतपुरुष.
(२) मृतपुरुषके पितृपक्षके पूर्वज पांच डिगरीमें, यानी चार पूर्वज बार्प, दादा, परदादा, नगड़दादा ।
(३) मृतपुरुषके बापके मातृपक्षके पूर्वज पांच डिगरीके अन्दर यानी दादीका बापं, दादीकादादा, दादीकापरदादी ।
(४) मातृपक्षके पूर्वज पांच डिगरीमें,यानी नानी, परनाना,नगड़नाना।
(५) मृतपुरुषकी माके मातृपक्षके पूर्वज पांच डिगरी तक यानी नानी का बांप और उसका दांदा.
नीचे दिया हुआ नक़शा देखो। इस ननशेमें सब पांच डिगरियोंमें हैं मगर नम्बर ७ 'बापकी माका परदादा' छठवीं डिगरीमे हैं। इसकी गणना करनेमें दादी नम्बर २ का शुमार नहीं किया गया इसलिये उसे भी पांच डिगरीके अन्दर माना है।