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________________ 8 उत्तराधिकार [ नवां प्रकरण पुत्रस्यार्य कुलजा पत्नी दुहितरोपिवा । तद्भावे पिता माता भ्राता पुत्राः प्रकीर्तिताः । नारदने यों कहा है कि पुत्रधनं पत्न्यभिगामि । तद्भावे दुहितृगामि तद्भावे दौहित्रगामि तद्भावे पितृगामि तद्भावे मातृगामि तद्भावे भ्रातृगामि तद्भावे भ्रातृपुत्रगामि तद्भावे सकुल्यगामि । - यद्यपि कुछ श्राचाय्यने मातासे पहिले पिताका हक़ स्वीकार किया है मगर वह सिर्फ जहां पर मयूखका स्वामित्व है वहांपर माना जाता है (देखो दफा ५७३; ५७७; ५७८) मयूखकी प्रधानता महाराष्ट्र यानी बम्बई स्कूलमें मानी जाती हैं, देखो दफा २३. दफा ६०८ बापकी वरासत (१) लड़के, पोते, परपोते, विधवा, लड़की, लड़कीका लड़का, चौर माताके न होनेपर बापको उत्तराधिकारमें लड़केकी जायदाद मिलेगी । याशवण्क्य - 'पत्नी दुहितरश्चैव पितरौ भ्रातरस्तथा २ - १३५. मिताक्षरा 'पितरौ' का अर्थ करनेमें द्वंद्व समास किया गया है, इसलिये माताके पश्चात् पिताका भाग आता है ( देखो दफा ६०७ ) मयूख जहां पर माना जाता है उसे छोड़कर बाक़ी सब जगहों पर माताके पश्चात् बापका हक़ उत्तराधिकारमें माना गया है, ( देखो दफा ६२४ ). (२) बाप, पूरे अधिकारों सहित जायदाद लेता है और उसके मरने पर उसके वारिसको जायदाद मिलती है। जब किसी मर्दको जायदाद मिलती है तो पूरे अधिकारों सहित मिलती है (देखो दफा ५६४ ). (३) महाराष्ट्र प्रान्त यानी बम्बई स्कूलमें जहां मयूखकी प्रधानता मानी जाती है मातासे पहिले बापको जायदाद मिलती है (देखो दफा ५७३ ५७७; ५७८ तथा दफा २३ ). दफा ६०९ भाईकी वरासत (१) लड़के, पोते, परपोते, विधवा, लड़की, लड़कीला लड़का, माता और पिताके न होनेपर भाईको उत्तराधिकारमें जायदाद मिलेगी, याज्ञवल्क्य - 'पत्नी दुहितरचैव पितरौ भ्रातरस्तथा' २ - १३५.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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