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उत्तराधिकार
[नयां प्रकरण
धनग्रहणे पित्रोः क्रमो न प्रतीयते। तथापि विग्रहवाक्ये मातृ शब्दस्य पूर्वनिपातादेकशेषभावपक्षे च मातापितराविति मातृशब्दस्य पूर्व श्रवणात् । पाठक्रमादेवार्थक्रमावगमाद्धनसम्बन्धेऽपि क्रमापेक्षायां प्रतीतकानुरोधेनैव प्रथमं माता धनभाक् तद्भावे पितेति गम्यते ।
___ भावार्थ-'तद्भावे पितरौं' के कहने से यह मतलब है कि दौहित्र के अभावमें माता, पिता धनके भागी होते हैं । यद्यपि "युगपदधिकरणवचनता" एकबार अनेक अर्थोके कहने में 'द्वन्द्व' नामक समास होता है एक शेष द्वन्द्र समासका अपवाद है। इस लिये 'माता च पिता च पितरौ' करनेसे क्रमका निर्देश होजाता है,माताका पहिले पिताका पीछे । इस समासमें माता शब्दका पूर्व निपात है और माता शब्द पहिले सुना जानेसे एवं पढ़नेके क्रमसे ही अर्थ का क्रम जाना जाता है इसीलिये धनके सम्बन्धमें भी पहिले माताही धन पाने की भागिनी होती है, उसके अभावमें पिता। मनुजी ने कहा है
अनपत्यस्य पुत्रस्य मातादायममाप्नुयात मातर्यपि च वृत्तायां पितुर्माताहरेद्धनम् ६-२१७ भ्रातासुतबिहीनस्य तनयस्य मृतस्य च मातारिक्थहरीज्ञेया भाता वा तदनुज्ञया । बृहस्पति
इन वचनोंसे यह सिद्ध होता है कि पितासे पहिले माता धन पानेकी अधिकारिणी है। ... (२) माताको उत्तराधिकार मिलेगा-पितासे पहिले माता मिताक्षरा स्कूलमें धन पानेकी भागिनी मानी गई है। देखो-अनन्दी बनाम हरी 33 Bom. 404; i! Bom. L. R. 641; 4 I. A. 1; IMad.174;14 Bom.605.
(३) महदूद अधिकार-विधवाकी तरह माता भी अपने लड़केकी जायदादमें महदूद अधिकार रखती है, माताके मरनेपर वह जायदाद उसके वारिसोंको नहीं मिलेगी, बक्लि लड़केके वारिसको मिलेगी। देखो-बृजभूषणदास बनाम बाई पार्वती 32 Bom. 26; जलेसुर बनाम अग्गुर 9 Cal. 725 • (४) बदचलनी और पुनर्विवाह--अगर माता उस वक्त बदचलन हो गयी है जब उसे लड़केकी जायदाद मिलनेका मौका आया है तो इस वजहसे माता उत्तराधिकारसे खारिज नहीं की जायगी और इसी तरहपर जब उसे