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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
मालिक सात सपिण्डोंके बीचका आदमी है। यानी वह बीचका सपिण्ड है। वह अपने बेटे, पोते, परपोतेका सपिण्ड इसलिये होता है कि वह मालिकको पिण्ड देते हैं तथा उसके सपिण्ड हैं। कारण उनसे उसको पिण्ड मिलता है ( देखो ल, ५, ६, ७) परन्तु मालिकके परपोतेका लड़का (ल, स, १७) सपिण्ड नहीं है, वह मालिकके सकुल्य हैं; क्योंकि वह अपने बाप, दादा, परदादाका ही सपिण्ड है और उन्हींको पिण्ड देता है और वह उससे पिण्ड पाते हैं । वह मालिकको पिण्ड नहीं देता और न मालिक उससे पिण्ड पाता है। इस लिये परपोतेका बेटा सकुल्य है और जब वह स्वयं सकुल्य है तो उसकी औलाद नं०१८, १६ और उनका बंश तीन पुश्त तक सब सकुल्य है नं०८मालिकका भाई है, मालिक स्वयं अपने भाईसे पिण्ड नहीं पाता, बलि उस पिण्डके फायदेमें शरीक होता है जिसको मर्द अपने पूर्वजों बाप, दादा, परदादाको देता है । यह तीन पूर्वज वही हैं जिनके लिये पिण्डदान करना मालिक पर फर्ज़ है, इसी तरह भतीजा ( ल .) भी अपने तीन पूर्वजोंको पिण्ड देता है जिनमें मालिकके दो पुर्वज यानी बाप और दादा शामिल हैं, इस लिये मालिकके यह सब सपिण्ड हैं। भतीजेका लड़का (ल १०) भी अपने बाप, दादा, परदादाको पिण्ड देता है जिनमें मालिकके पूर्वजोंमें एक शामिल है। इसलिये मालिकका सपिण्ड है मगर भतीजेका पोता (ल, स, २३) सकुल्य है इसलिये कि वह पिण्ड अपने बाप, दादा, परदादाको देताहै मगर मालिकको या मालिकके पूर्वजोंको उसका फायदा कुछ नहीं पहुंचता। इसी तरहसे मालिकका चाचा (ल ११ और मालिकके बापका चाचा ( ल १४) सपिण्ड है क्योंकि मालिकका चाचा मालिकके दादा और परदादाको, तथा मालिकके बापका चाचा मालिकके परदादाको पिण्ड देते हैं । एवंदोनोंके लड़के पोते मालिकके पूर्वज दादा और परदादाको पिरड देते हैं इससे सब सपिण्ड है। मगर उनके लड़के यानी (ल, स, २६. २७, २८, और २६, ३०, ३१ ) सकुल्य हैं क्योंकि वह मालिकके किती पूर्वजको पिएड नहीं देते। (वा, स२. २१, २२ ) सकुल्य हैं और इनका मालिक सकुल्य है। इसी तरहपर सकुल का फैलाव आगे भी होसकताहै। सपिण्ड और समानोंदकके बीच में सकुल्यहोते हैं। दफा ५८८ समानोदक किसे कहते हैं
समानोदक वह रिश्तेदार कहे जाते हैं जो मालिकसे सातवीं पीढ़ीके पश्चात् और चौदहवीं पीढ़ीके या इक्कीसवीं पीढ़ीके भीतर होते हैं। देखो इस विषयमे प्रमाण
सर्वेषामेव वर्णानां विज्ञेया साप्तपौरुषी सपिण्डता ततःपश्चात् समानोदक धर्मता।ततः कालवशात्तत्र विस्मृतौ