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दफा ५७५-५७७ ]
मर्दोका उत्तराधिकार
( १ ) मरनेवालेकी खुद कमाई और अलहदा जायदाद, चाहे वह मरनेके समय शामिल शरीक परिवारमें क्यों न हो उसके वारिसको उत्तराधिकार के क्रमानुसार मिलेगी ।
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(२) सब शामिल शरीक यानी मुद्दतरका जायदाद, जिसका कि मरने वाला अपनी मौत के समय अकेला ही जीता हिस्सेदार था अर्थात् दूसरे हिस्से दार सब उसकी ज़िंदगीमें मर चुके थे, उत्तराधिकारके क्रमानुसार उसके वारिसको मिलेगी ।
(३) मृतपुरुषकी सब जायशद, चाहे किसी तरहसे वह प्राप्तकी गयीं हो जब कि मृतपुरुष अपनी मौतके समय अलहदा होगया हो तो उसकी सब जायदाद उत्तराधिकारके क्रमानुसार उसके वारिसको मिलेगी ।
नोट - स्मरण रखना कि ऊपर बताई हुई तीन तरहकी जायदादमें ही उत्तरराधिकारका कानून लागू होगा दूसरीमें नहीं | खुद कमाई हुई, और उत्तराधिकारमें मिली हुई जो कानूनन् उसकी अलहदा समझी जाती हो, और मुश्तरका जायदादका बटा हुआ हिस्सा इन किस्मोंमें से कोई एक किस्म होगी तो उस जायदाद का वारिस वह होगा जो मृत पुरुषका उत्तराधिकार के अनुमार वारिस करार दिया गया हो ।
दफा ५७६ मिताक्षरालॉके अनुसार उत्तराधिकारका सिद्धान्त
मिताक्षरा स्कूलमें वरासतके क्रमका प्रधान सिद्धांत खूनकी नज़दीकी रिश्तेदारी मानीगयी है। इसपर नजीरें देखो - पारोट बापालाल बनाम महता हरीलाल (1894) 19 Bom 631; बाबालाल बनाम ननकूराम (1895) 22 Cal. 339; सुब्बासिंह बनाम सरफराज़ ( 1896 ) 19 All 215; सुब्रह्मण्य बनाम शिवा (1894) 17 Mad. 316; अप्पा नदाई बनाम बागूबाली (1909 ) 33 Mad 439, 444; चिन्नासामी बनाम कुंजूपिल्लाई ( 1912 ) 35 Mad 152. बंगालस्कूल अर्थात् दायभाग स्कूलमें वरासतके क्रमका प्रधान सिद्धांत पितृ और मातृ वंशके पूर्वजोंको आत्मिक लाभ पहुंचाने की बुनियादपर निर्भर माना गया है; देखो - गुरु गोविंद बनाम अनन्दलाल 5 Beng. L. R.15. दफा ५७७ मिताक्षरा, मनुके वचनानुसार उत्तराधिकार कायम करता है
अनन्तरः सपिण्डाद्यस्तस्य तस्य धनं भवेत्
अतऊर्ध्वं सकुल्यःस्यादाचाय्र्यः शिष्यएवच । मनुह - १८७
कुल्लूकभट्ट - ने इस लोककी टीकामें लिखा है कि - "सपिण्डमध्यात्संनिकृष्टतरो यः सपिण्डः पुमान् स्त्री वा तस्य मृतधनं भवति ।
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