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________________ उत्तराधिकार [ नवां प्रकरण में मुश्तरका जायदाद के हिस्सेदारके मरने के बाद जो हिस्सेदार जीवित रहता जाय उन्हीं में जायदाद चली जायगी देखो दफा ५५८ । इन्हीं दोनों सूरतोंसे मिताक्षरालॉ में जायदाद वरासतन पहुंचना माना गया है । 'सरवाइवरशिप' का तरीक़ा मुश्तरका परिवारकी जायदाद के लिये लागू होता है जिसपर कि आखिरी मालिक बिल्कुल अलहदा क़ब्ज़ा रखता हो । ६६६ उदाहरण - जय और विजय दोनों भाई हैं और शामिल शरीक परिवारके मेम्बर हैं तथा मिताक्षराला के प्रभुत्वमें रहते हैं । जय, मरा और उसने भाई विजय को और अपनी विधवा स्त्री तुलसीको छोड़ा । अब जयका हिस्सा चज़रिये हक़ 'सरवाइवरशिप' के विजयको मिलेगा, उसकी विधवा तुलसीको नहीं मिलेगा । मगर तुलसीको सिर्फ रोटी कपड़ा मिलनेका हक़ रहेगा । लेकिन अगर जय और विजय दोनों अलहदा होते तो जयकी जायदाद उसके मरने पर उसकी विधवा तुलसीको मिलती और तुलसी, बतौर वारिस के जायदादकी मालिकिन होती विजय, नहीं होता । यह माना गया है कि विधवा ऐसी सूरत में भाईके बनिस्बत नज़दीकी वारिस है । रक्त सम्बन्ध - मिताक्षरालों के अधीन किसी हिन्दू के सम्बन्धमें ऐसे सपिण्ड वारिसों के मध्य जो कि समान हैसियत के हों, वह वारिस होगा जिसका रक्त सम्बन्ध पूरा होगा बमुकाबिले उसके जिसका रक्त सम्बन्ध आधा होगा । यह पूर्ण रक्त और अर्द्ध रक्तकी गुरुता केवल भाई और भाईके पुत्रों तकही निर्भर नहीं है बल्कि इसका अमल सपिण्ड सम्बन्धियों तक होता है-नारायन बनाम हामजी 21 N. L. R. 163. दफा ५६२ दायभागलॉके अनुसार जायदाद कैसे पहुंचती है दायभागलॉके अनुसार जायदाद सिर्फ एकही तरीकेसे पहुंचती है । वह तरीक़ा 'सक्सेशन है, देखो दफा ५६१ दायभाग मुश्तरका परिवारकी जायदाद के बारेमें भी 'सरवाइवरशिप दफा ५५८' का तरीका नहीं मानता । तात्पर्य यह है कि मिताक्षरालॉके अन्दर मुश्तरका खान्दानका हर एक मेम्बर मुश्तरका जायदाद में सिर्फ शामिल शरीक हक़ रखता है और दायभागलों के अन्दर मुश्तरका खान्दानका हर एक मेम्बर अपने हिस्सेका अलहदा अलहदा मालिक होता है । इसी सबबसे उसके मरनेपर उसका वारिस उसकी मुश्तका जायदाद के हिस्सेका उसी तरह मालिक हो जाता है मानो जायदाद के उतने हिस्सेका वह ( मरनेवाला ) अलहदा मालिक था । दायभाग - वरासतका मस्ला दायभागके सम्बन्धमें, इस सिद्धान्तपर चलता है कि केवल वही वारिस हो सकते हैं जो कि उस व्यक्तिकी, जिसकी जायदाद के वह वारिस हो रहे हैं आत्माको लाभ पहुंचा सकें । बङ्गाल प्रणाली के अनुसार पुत्रीके पुत्रका पुत्र वारिस नहीं हो सकता । उस सूरत में भी जब
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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