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बटवारा
[आठवां प्रकरण
दफा ५३४ धर्मच्युत हो जानेसे कोपार्सनर नहीं रहता
मुसलमान, या ईसाई हो जानेसे मुश्तरका खान्दानका हिन्दू, कोपासेनरीसे अलाहिदा हो जाता है, देखो-गोविन्दकृष्ण नरायन बनाम अब्दुल कयूम 25 All. 564-5737 29 All. 487.
जन्मान्धका अधिकार -जब किसी वटवारेकी नालिशमें, मुद्दाअलेहने बयान किया हो कि मुद्दई बवजह जन्मसे अन्धा होनेके हिस्सा पानेके क़ाबिल नहीं है, किन्तु तनकीहके पहलेही मुद्दाअलेहने मुद्दईसे सुलह करली हो, जिसके कारण नालिशका कारण बाकी न रह गया हो, और उस सुलहनामेकी एक बात यह भी हो कि मुद्दाअलेहने मुद्दईके हकको मान लिया हो, तो वह समझौता मुद्दाअलेह और उसकी सन्तानपर लाज़िमी होगा और मुश्तरका खान्दानकी जायदादमें मुद्दईके अधिकार पानेके लिये आख्रिरी होगा-बुध सागर बनाम विशुनसहाय 23 A. L. J. 141; 86 I. C. 154; 47All.3273 A. I. R. 1925 All. 366.
जन्मान्धका अधिकार-इस बातके सुबूतकी जिम्मेदारी, कि एक पक्ष पैदायशी अन्धा होनेके कारण मुश्तरका खान्दानकी जायदादमें हिस्सा पाने के अयोग्य है, उस पक्षपर है जो इसे पेश करे-बुद्धसागर बनाम विशुनसहाय 23 A. LJ. 141; 86 I.C.554; 47All.327;A..I.R.1925 All 366. दफा ५३५ बटवारेकी डिकरी
बटवारेकी डिकरीका वही असर होता है जो बटवारेके इकरारनामेका होता है, देखो-तेज प्रतापसिंह बनाम चम्पाकली कुंवरि 12 Cal. 96; 4 Bom. 157. बटवारेकी डिकरी या किसी ऐसे मुक़द्दमेकी डिकरी जिसमें जायदादकी अलाहिदगीका या पञ्चायत द्वारा अलाहिदा करनेका उद्देशहो अलाहिदा हो जानेका असर रखती है-19 Mad. 290; 20 Mad. 490; 5 I.A. 228; 4 Cal. 434; 12 W. R. C. R. 510. थोड़े फ़रक़के साथ देखो-35 Cal. 961; 12 C. W. N. 127.
डिकरीके अनुसार हिस्सा मिलने में कुछ देर हो तो इससे अलाहिदगी में कुछ फरक नहीं पड़ता-लक्ष्मणदारकू बनाम नरायन लक्ष्मण 24 Bo.n. 182. ऐसा माना गया है कि अपील फैसल होनेतक डिकरी अलाहिदगी पैदा नहीं करती लेकिन यदि अपीलका फैसला होनेसे पहले फरीक स्वयं अला. हिदा हो जाय तो डिकरीका वही असर होगा-6 Bom. 1137 5I. A. 228; 4 Cal. 434.
बङ्गाल स्कूलके एक मुकदमे में बटवारेकी डिकरी होनेपर भी सब फरीक मुश्तरका रहते रहे, तो मानागया कि अलाहिदगी नहीं हुई, देखो-प्राणकिशुन मित्र बनाम रामसुन्दरी दासी (1842) Fulton 410; 4 Bom. 157.