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दफा ५३०]
अलहदगी और बटवारा
कामों में शामिल था परन्तु ये सब बाते उस दर्जे तक सुबूत ज़रूर हैं कि जिनसे यह मान लिया जा सकता है कि अलहदगी होगयी।
अगर कोई आदमी मुश्तरका खान्दानसे मुकम्मिल अलग हो जाय पीछ मुश्तरका खान्दानके किसी रिश्तेदारकी परवरिश और उसके लड़के, लड़कियों का विवाह आदि करे और अपना काम भी उनसे कराता रहे इत्यादि सब बातें वैसेही करे जैसे कि मुश्तरका रहने में होती तो इससे अलहदगीमें कोई बाधा नहीं पड़ती, देखो-जगनकुंवर बनाम रघुनन्दनलाल शाहू 10 W. B. C. R. 128.
जहांपर ज़ाहिरा मुश्तरका खान्दानका कारोबार भिन्न भिन्न स्थानों में चलता हो और साल भरमें या किसी वक्त हिसाब किताब करके हिस्सेदारोंके नामसे अलग अलग खर्च और मुनाफेका जमा खर्च हो जाता हो तो वे सब अलहदा समझे जायेंगे, चाहे भोजन साथही करते हों और एकही घरमें रहते हों और एकही कारोबारमें सब लोग काम करते हों जमा खर्च हर साल होना ज़रूरी नहीं है, चाहे जब ऐसा जमा खर्च हो जाय, असर एकही रखेगा।
सुबूतकी जिम्मेदारी-किसी हकीकी वक्तपर बटवारेका विवादग्रस्त प्रश्न अवश्य प्रमाणित किया जाना चाहिये-पीछेके बटवारेके सुबूतसे, यह जिम्मेदारी दूर नहीं होती-मु० भगवानी कुंवर बनाम महाऊसिंह 23A. L. J. 589; 41C L. J. 591; 22 L. W. 211, 29 C. W.N.10378(1925) M. W. N. 421; 88 I.C. 385; A. I. R. 1925 P. C. 132, 49 M.L. J. 55 ( P. C.). दफा ५३० अधूरा बटवारा
आपसमें समझौता करके ऐसा किया जा सकता है कि अलगाव या बटवारेमें कुछ कोपार्सनर शरीक हों और कुछ नहीं, परन्तु शरीक न होनेवाले कोपार्सनरोंकी स्थितिमें इस अधूरे बटवारे या अलगावका कुछ असर नहीं पड़ेगा, देखो-रावनप्रसाद बनाम राधाबीबी 4 M. I. A. 137; 7W.R P. 0. 35-37; 25 Mad. 1493 2 Mad. 317.324, 5 Cal. 474, 18 Bom. 611; 35 Bom. 293; 13 Bom. L. R 287; 35 Cal. 9617 12 C. W. N. 127; 37 I. A. 161; 22 All. 415.
इसी प्रकार आपसमें समझौता करके जायदादका कुछ भाग बांटा जा सकता है और कुछ नहीं । बची हुई जायदाद जब चाहें पीछे बांट लें-18 Mad. 418; 14 C. W. N. 221. अधूरे बटवारेसे आम तौरसे पहिले ऐसा समझाया जा सकता है कि सब कोपार्सनर अलग होगये,देखो-32Mad.1913; मगर 3 Mad. H. C. 325. में माना गया कि ऐसे समझे जानेका प्रतिवाद भी किया जा सकता है।