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दफा ५२८]
अलहदगी और बटवारा
ध्यान रखने योग्य बातें
वह जायदाद बांटी जा सकती है जो कोपार्सनरी प्रापरटी होती है, देखो दफा ४१३ से ४१७. जो जायदाद निजकी किसी व्यक्तिकी होती है हरगिज़ नहीं बांटी जा सकेगी। जब खानदान में या खानदान के किसी एक मेम्बरके दिलमें बटवाराका प्रश्न पैदा हो तो पहले यह निश्चित करना ज़रूरी है कि कौन जायदाद बटवारेके काबिल है। सबसे पहले यह सिद्धांत माना जायगा कि जितने कर्जे खानदानके देने हैं या जिन कोंका बोझा खानदानी जायदादपर है जिसमें बापके कर्जे शामिल हैं वे सब अदा व बेबाक़ कर दिये जायंगे, देखो-लक्ष्मण बनाम रामचन्द्र 1 Bom. 561; 3 Mad. H. C. 1773 181. दूसरा सिद्धांत यह होना चाहिये कि खान्दानी स्त्रियों के और किसी अयोग्यताके कारण जो वारिस बंचित किये गये हैं उनके भरण पोषण और लड़कियोंकी शादीके खर्चेका प्रबन्ध बटवारेसे पहले जायदादमें से हो जाना चाहिये, देखो ( 1924 ) 5 Lah 375; 84 I. C. 168; तीसरा सिद्धांत यह माना जायगा कि जब बटवारा भाइयोंके बीच हो तो विधवा माताकी अन्त्येष्ठी क्रियाके खर्च उस जायदादसे अलहदा होजाना चाहिये, देखो--32 Mad. 191, 200.
(५) अलहदगी और बटवारा
दफा ५२८ अलहदगी कैसे होती है
मिताक्षराके अनुसार बाप अपने पुत्रोंकी मरजीसे या उनकी मरजीके विरुद्ध जायदादका बटवारा कर सकता है-कण्ठासामी बनाम डोराई सामी ऐय्यर 2 Mad. 317; मिताक्षराके अनुसार बापको यद्यपि स्वयं बटवारा कर देनेका अधिकार है परन्तु इसके सिवाय भी मुश्तरका खान्दाद के कोपार्सनर मुश्तरका खान्दानमें बने रह कर भी अलग अलग हो सकते हैं। ऐसा करनेके बाद वे या तो 'टेनेन्टम् इन कामन् ' ( Tenants in Common ) दफा ५५८ देखो) हो जाते हैं या अलग अलग हिस्सोंके मालिककी हैसियतसे रहते हैं या उनकी स्थितिमें कोई और ऐसा परिर्वतन हो सकता है जो मुश्तरका खान्दानके मेम्बरोंकी हैसियत के विरुद्ध न हो । ऐसी अलहदगी अदालत की आशा या महकमें मालकी आज्ञा से भी हो सकती है। .
सब कोपार्सनर शरीक होंगे-आपसके समझौते से जो अलगाव या बटवारा हो उसमें सब कोपार्सनर शरीक रहेंगे । नाबालिग कोपार्सनरों की तरफसे उनके वली शरीक रहेंगे।