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दफा ५०२]
बापके कानूनी कर्जे
कानूनके अनुसार तो उस इकरारके पूरे करनेकी जिम्मेदारी पैदा होगई हो और फौजदारी कानूनके अनुसार वह इक़रार अपराध समझा जा सकता हो, और बाप उस फौजदारी अपराधसे बचने के लिये तीसरे आदमीसे प्रामेसरी नोट ( रुक्का) लिखकर कर्जा लिया हो तो ऐसी सूरतमें पुन उस कर्जे के ज़िम्मेदार हैं, पुत्र ऐसा कहकर कि हमारे बापने फौजदारी अपराधकी धमकीके असरसे वह रुक्का लिखा था इसलिये वह नाजायज़ है अपना बचाव नहीं कर सकते देखो-28 All. 718; 3 A. L.J. 506; A.. W. N. 1906 P. 222.
(१६) बापने किसीके क़र्जा चुका देनेकी ज़मानत करली हो-इसमें मतभेद है- बम्बई -बम्बई हाईकोर्ट के अनुसार पुत्र अपने बापकी ज़मानतका क़र्जा देनेके लिये मौरूसी जायदाद तक पाबन्द माना गया है। एक मामलेमें बापने अनाज देनेकी ज़मानतकी, अदालतने कहा कि वापके पास जो मौरूसी जायदाद थी वह कुल जिम्मेदार है और जब बापके मरनेपर वह जायदाद पुत्रों के हाथमें आवे तो उस जायदाद तक पुत्र मी ज़िम्मेदार होंगे, देखो-22 Bom. 454. मगर पौत्र अपने दादाकी जमानतका पाबन्द नहीं होगा जब तक कि दादाने उस ज़मानतके बदले में कोई चीज़ न पाई हो 28 Bom. 408. ट्रिवेलियन फेमिलीलॉ 308, ट्रिलियनका कहना है कि पुत्र और पौत्रमें कुछ फरक नहीं है।
इलाहाबाद-इलाहाबाद हाईकोर्टने, महाराजा आफ बनारस बनाम रामकुमार मिश्र 26 All. 611. वाले मुकदमेमें कहा कि शामिल शरीक हिन्दू कुटुम्बमें किसी पट्टेका रुपया देनेकी जमानत यदि बापने की हो तो उस लिखतके अनुसार बापपर पूरी तौरसे जिम्मेदारी पैदा हो जानेपर पुत्र भी, अपने मौरूसी जायदाद के हिस्से तक पाबन्द माने गये हैं।
मदरास-अगर ऐसा मुक्तहमा मदरास हाईकोर्ट में हो तो वहां भी ऐसाही होगा, देखो--28 Mad. 377; 11 Mad. 378.
मध्य भारत-मध्य भारत और पञ्जाबमें भी बापकी ज़मानतके कर्जमें पुत्र जिम्मेदार माने गये हैं, देखो--1 N. L. R. 178, No. 60 of 1886 Civil.
___ कलकत्ता--कलकत्ता हाईकोर्टको इस विषयमें अभी तक सन्देह है 4 M. L. J. 429; 13 C. W. N. 9 वाले मुक्नहमेमें जजोंने कहा कि हम मदरास, इलाहाबाद और बम्बई हाईकोटौंकी रायके विरुद्ध कोई सिद्धान्त निश्चित नहीं करना चाहते मगर हमारी राय यह है कि उक्त हाईकोर्टोंके फैसले, इस विषयके शास्त्रोंमें कहे हुये श्लोकोंके अर्थानुसार विचारने योग्य हैं। यह ऊपरका मुकदमा रेहनका था इसमें बापने कहा था कि अगर महाजन रेहन