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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी कर्जा
(सातवां प्रकरण
जब पिता द्वारा किये हुये रेहननामेकी डिकरी हो जाय, तो पुत्रोंके लिये यह काफ़ी नहीं है कि वह यही साबित करें कि रेहननामा आवश्यकता के लिये न था, बल्कि यह भी साबित करें, कि वह गैर कानूनी और गैर तहजीबी था-केदारनाथ बनाम शङ्करदयाल 94 I. C. 250.
गैर तहजीबी ऋणमें क्या शामिल है--पिता द्वारा दुरुपयोगकी हुई रक्रम जाब्ता फौजदारीके अनुसार कैद-अपराधकी तादाद-जगन्नाथप्रसाद बनाम जुगुलकिशोर 48 All. 9; A. I. R. 1926 A. 89.
गैर कानूनी और गैर तहजीवी क़र्ज--प्रतिस्पर्धाके कारण नालिश करने पर हर्जाना-पुत्रोंपर इस प्रकारके कर्जकी अदाईकी जिम्मेदारीका विचार किया गया है, देखो-सुन्दरलाल बनाम रघुनन्दनप्रसाद 83 I. C. 413; A. I. R. 1924 P. 465..
पिता द्वारा रेहमनामा इनशिफ़ाकी हुई जायदादका कर्ज चुकाने के लिये खान्दानके लिये कोई फायदा नहीं साबित हुआ-पुत्रोंपर पाबन्दी नहीं हैभगवतीसिंह बनाम गुरुचरन दुबे A. I. R. 1925 All. 96,
पिता द्वारा रेहननामा--डिकरीकी तामीलपर नीलाम--पुत्रपर इस बातकी जिम्मेदारी है कि वह कर्जको गैर तहजीबी साबित करे--विश्वनाथ राय बनाम जोधीराय A. I. B. 1925 All. 120.
बापके लिये हुए कानूनी कोंके उदाहरण
दफा ५०२ बापके लिए हुए कानूनी कर्जे
जिन क़र्जीका ज़िकर नीचे किया गया है उसके लिये पुत्र और पौत्र पाबन्द होंगे:
(१) बापने अपने बापके श्राद्ध करने के लिये जो कर्ज लिया हो, चाहे पुत्र बालिग या नाबालिग हों या कोई पौत्र जो अपने बापके मरनेपर पैदा हुआ हो सब उस कर्जेके पाबन्द हैं, देखो-6 W. R. 34; 11 W. R. 52. मेकनाटन हिन्दूलॉ Vol. 2 Ch. 11 P. 296.
हिन्दूलॉ के अनुसार पौत्र अपने बापकी माता (दादी) की अन्तेष्ठी क्रियाके खर्च के लिये जिम्मेदार नहीं माना गया, देखो-7M. L. T. 263; 5 Indian Cases 55.