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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्ज़ा
[ सातवां प्रकरण
गया हो तो जब तक वह चुकाया न जाय तब तक जायदाद धनीके पास रहेगी। नारद कहते हैं कि बापका क़र्जा क्रमसे पुत्रादिकोंपर प्राप्त होता है यानी पुत्र यदि वह क़र्जा न दे सकें तो पौत्र देवें और यदि वे भी न दे सके तो प्रपौत्र देवें मगर चौथी पीढ़ीको वह क़र्जा पाबन्द नहीं करता ।
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यह बात अभी हिन्दुओंमें बहुत कुछ प्रचलित है. क्योंकि जब कोई हिन्दू गया श्राद्ध करनेके लिये जाता है तो वह जाने से पहिले अपने पैतृक ऋण चुका देता है। शास्त्रकार कहते हैं कि यदि वह पैतृक ऋण चुकाये बिना गया मैं श्राद्ध करे तो पितरोंकी मुक्ति नहीं होती । अङ्गरेजी क़ानून से बढ़कर हिन्दू धर्म शास्त्रोंने पैतृक ऋण चुकाने की आज्ञा दी है, अङ्गरेजी क़ानूनमें तो सिर्फ बाप और दादा क़र्जा चुकाने की जिम्मेदारी पुत्र और पौत्रकी मुश्तरका जायदाद के हिस्से तक मानी गई है। मगर धर्मशास्त्रोंमें इससे बहुत ज्यादा मानी गयी है उन्होंने बाप, दादा, और परदादाके क़र्जेकी जिम्मेदारी जायदाद और उनकी सन्तानकी ज्ञात पर मानी है तथा यह उपदेश किया गया है कि बिना पैतृक ऋण चुकाये पितरोंकी मुक्ति नहीं होती और ऐसा करना पुत्र, पौत्र, और प्रपौत्रपर परमावश्यकं धर्म है । इस विषयपर और भी देखो - डबल्यु. में कनाटन हिन्दूलॉ 2 Vol. P. 284. कोलब्रुक डाइजेस्ट 1 Vol. P. 270; तथा Act No. 5 of 1881 की दफा 101-105.
दफा ४९९ दूसरे हिस्सेदार जिम्मेदार नहीं होंगे
पुत्र और पौत्रके सिवाय मुश्तरका खान्दानके दूसरे कोपार्सनरौपर कर्जा चुकाने की जिम्मेदारी नहीं है जिन्हें सरवाइवरशिपके अनुसार हक़ प्राप्त होता हो, देखो - जबकि हिस्सा बेच दिया गया हो 3 Mad. 145. जहां पर किन बट सकने वाली जायदाद हो 29 Mad. 453; 32 Mad. 429;
30 Mad. 454.
यदि कोई नाजायज़ तौरसे किसीके मरनेपर उसकी जायदादपर क़ब्ज़ा दखल करले तो उस जायदादसे मृत पुरुषके क़र्जे वसूल किये जा सकते हैं, देखो --3 Mad. 359; 7 Mad. 586; 4 Cal. 342; 3 CL. R. 154; 4 Cal. 508; 35 Cal. 276; 12 C W. N. 237.
पट्टे मिली हुई ज़मीनमें, जिसपर क़र्जेकी डिकरीकी इजरा नहीं हो सकती, उपरोक्त नियम कोई भी लागू नहीं होंगे, देखो - 9 I. A. 104; 6 Bom. 211. 7 Mad. 85; 10 Cal. 677; 15 I. A. 19; 15 Cal. 471; 15 Bom. 13; 25 Cal. 276; 12 C. W. N. 237.
दफा ५०० क़र्ज़ा न चुकाने में धर्मशास्त्रका मत
देखो नारदस्मृति प्रथम विवादपद अध्याय ३ श्लोक ६-१०,