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दफा ४६४ - ४६७ ]
- पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
मियाद में कुछ भी फरक नहीं पड़ेगा; देखो -23 Mad 292, 22 Mad. 49; 16 Mad. 99. उक्त क़ानून मियादका आर्टिकल इस प्रकार है:
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'ऐसा दावा जिसके लिये इस क़ानून में कोई मियाद नियत नहीं की गई ६ छः वर्षकी मानी जायगी और यह मियाद उस वक्तसे शुरू होगी जबकि नालिश करनेका हक़ पैदा हो जाय ।'
नोट - - कानून मियादमें यह १२० आर्टिकल सिर्फ उस वक्त काममें लाया जाता है जबकि किसी मुकद्दमेंकी मियाद स्पष्ट रीति से उस कानून में न बतायी गया हो, जब अदालतका पूरे तौर से इतमान हो जाय कि जिस मुकद्दमेमें यह आर्टिकल लागू किये जानेकी प्रार्थना की जाती है उस मुक़द्दमे के बारेमें 'क्रातून मियादमें कोई निश्चित मियाद नहीं बतायी गई तब वह इसके अनुसार मियाद मान लेगी इस आर्टिकलमें एक बारीक बात यह ध्यान में रखने योग्य है कि इसके अनुसार मियाद उस वक्त से शुरू होती हैं जबकि वादीको हक़ नालिश करनेको पैदा हो जाय न कि बिनाय मुखासमत ( Cause of Action ) पैदा होनेसे ।
दफा ४९६ कर्जे जिनका बोझ जायदादपर नहीं पड़ता
बापके किये हुये सादे कंट्राक्ट ( मुआहिदा ) चाहे वह ज़बानी या किसी लिखत द्वारा किये गये हों उनका बोझा मुश्तरका खान्दानकी जायदाद पर नहीं पड़ता और न बापकी अलहदा पैदा की हुई जायदादमें पड़ता है अर्थात ऐसे क़र्जेसे दोनों क़िस्मकी जायदाद कुर्क और नीलाम नहीं हो सकती और जबकि लड़का या कोई वारिस जिसे बापके या पूर्वजके मरने पर जायदाद मिली हो उस जायदादका इन्तक़ाल करदे तो बापके क़र्जेका डिकरीदार उस आदमी के विरुद्ध दावा नहीं कर सकता जिसके नाम इन्तक़ाल किया गया हो, मगर शर्त यह है कि जब वह आदमी जिसके नाम इन्तक़ाल किया गया है यह बात जानता हो कि क़र्जेके मारने के लिये ही यह इन्तक़ाल किया जाता है या यह जानता हो कि डिकरीदारका हक़ मारनेके लिये किया गया है तो ऐसी सूरतमें लड़कों और वारिसोंके विरुद्ध डिकरीदारका हक़ डिकरी वसुल करनेके लिये सिर्फ उनकी जातसे पैदा होगा, देखो - ज़बरदस्तखां बनाम इन्द्रमन, आगरा हाईकोर्ट फुलबेंच रिपोर्ट 1903 P. 71; 2. W. R. C. R. 296; 9 Bom. H. C. 116; 4 Mad. H. C. 84; 4 Cal.897; 4 C. L. R. 193; 11 I. A. 164; 6 All. 560.
दफा ४९७ बापके क़र्ज़का बोझा पुत्रकी जायदादपर नहीं पड़ता
areer क्रर्जा पुत्रकी अलहदा जायदादले कदापि वसूल नहीं किया जा .सकता और न पुत्रकी उस जायदादसे वसूल किया जा सकता है जो बापने नेकनीयती से पुरस्कार ( इनाम ) में दी हो चाहे वह मुश्तरका जायदादका कोई हिस्सा भी हो, बापके क़र्जेका डिकरीदार सिर्फ मुश्तरका खान्दानकी