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दफा ४८१ ]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
पूर्वजोंका ऋण - पूर्वजोंका ऋण उस समय और वाक्रयेसे पहिलेका होना चाहिये, जबकि पिता अलाहिदा हुआ था - गजाधरबक्ससिंह बनाम बैजनाथ AIR 1925 Ondh. 9.
पूर्वजों का क़र्ज, जो फिजूलखर्ची या असावधानीके कारण हुआ है पुत्रों पर लागू है -- बंशीधर बनाम पाण्डुरङ्ग A. I. R 1925 Nag 196.
पहिलेकी आवश्यकताके लिये क़र्ज-- किसी इन्तक़ालके सम्बन्धमें श्रावश्यकता - प्रमाणित करनेके लिये, यह काफ़ी नहीं है कि पिता द्वारा खान्दानी जायदादको रेहन करके जो क़र्ज लिया गया है उससे किसी पहिले रेहननामेका क़र्ज जो खान्दानी जायदाद पर था चुकाया गया है । यह भी प्रमाणित किया जाना चाहिये कि पहिलेका रेहननामा भी आवश्यकता के लिये ही था - सुरेन्द्रनाथ पांडे बनाम बृन्दावनचन्द्र घोष A. I. R. 1925 Cal. 545.
पुत्र और प्रपौत्र दोनों पर पूर्वजोंके ऋणकी समान जिम्मेदारी हैमाधोप्रसाद बनाम नियामत 84 I. C. 501; 27 O. C. 366; A. I. R. 1925 Oudh 185.
साझीदार द्वारा कर्ज -- खान्दानी जायदादका ऋण चुकानेके लिये बेचा जाना -- साझीदारकी स्त्री अपनी सकूनत ( Residence ) का दावा तब तक नहीं कर सकती जब तक कि वह उस क़र्जको गैर-तहजीब न साबित करे-ननकी बनाम श्यामदास सालिकराम AIR 1925 Lah. 638.
मुश्तरका खान्दान- पूर्व क़र्जमें वह क़र्ज भी शामिल है जो भोगबन्धक रेहननामे के अनुसार हो- माधोप्रसाद बनाम नियामत 27 O. C. 366; 84 I. C. 501; A. I. R. 1925 Oudh 185.
मुद्दाअलेह के पिता द्वारा किया हुआ पहिलेका रेहननामा - मुद्दाभलेह के चचा द्वारा किया हुआ पीछेका रेहननामा, जिसकी अदाई पहिले होनी है पहिले रेहमनामेका कर्ज पूर्वजोंका क़र्ज नहीं है - केवल पुत्रकी पवित्र पावन्दी इन्तक़ालको जायज़ नहीं बनाती - हिन्दूलॉ - इन्तकाल - बन्शीधर बनाम बिहारीलाल 89 1. C. 67; 12 O. L. J. 359; 2 O. W. N. 369; A. I. R. 1925 Oudh 626.
पहिली दस्तावेज़ जो पूर्वजोंका क़र्ज हो, उसके बदले जानेमें, पाबन्दी नहीं रहती -- केवल इस वजहसे किसी मुर्तहिनने अपने पहिले दस्तावेजोंकी रक्कम वसूल करने के बजाय जो कि बिल्कुलही अलाहिदा, साफ़ और स्वतन्त्र थी, उसकी मियाद खतम होनेके समय, उन्हें रेहननामेमें मय और मावजोंके शामिल कर लिया और सूदकी दर भी घटा दी, पहिलेके रेहननामाका जो कि पूर्वजोंके क़र्ज पर था प्रभाव नहीं पड़ सकता, और उसके लिये यह आव