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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी कर्जा
(सातवां प्रकरण
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कानून जो इस किताबकी दफा ७८० से ७८८ प्रकरण १५ में बताया गया है जहां पर नहीं लागू किया गया वहां वह किसी तरहसे भी लागू नहीं होगा, देखो-2 C. W. N. 603. लक्ष्मणदास बनाम खुन्नूलाल 19 All. 26; 31 Bom. 354. में माना गया है कि जब कर्जकी जिम्मेदारी मानली गयी हो तो उसके सूदकी जिम्मेदारी भी उसीके साथ मानली जायगी।
जब कोई हिस्सेदार किसी अतिरिक्त अदाईका दस्तावेज़ लिखता है जिसमें कि वह पूर्व अदाईके दस्तावेज़का जिक्र करता है, तो उसे इसके बाद यह दावे स्थापित करनेका अधिकार नहीं रहता कि दस्तावेज़का दर . सूद अधिक था जबकि वह स्वयं दस्तावेज़का एक तरीक़ है, उसके बयान या कार्यवाहीसे यह साबित होता है कि उसने सूदकी मुनासिबतको स्वीकार कर लिया है, तो वह उसपर बादको एतराज़ नहीं कर सकता-चन्द्रिका प्रसाद बनाम नाजिर हुसेन-92 I. C. 681 (2);A. I.R.1926 Oudh. 306. दफा ४८० बापका अधिकार
बापको जो अधिकार प्राप्त हैं उसे खान्दानका कोई दूसरा आदमी, बापकी गैरहाजिरीमें भी काममें नहीं ला सकता देखो, प्रेमजी बनाम हुकुमचन्द 10 Bom. 363 यह माना गया है कि अगर बाप दिवालिया हो जाय तो फिर आफीशल्--एसाइनी को वही अधिकार प्राप्त हो जाता है जो बापको है, देखो-फकीरचन्द मोतीचन्द बनाम मोतीचन्द हरखचन्द 7 Bom. 438; 19 Mad. 74.
पहलेके कर्जे को अदा करनेके लिये या किसी कानूनी ज़रूरतके लिये ही बाप मुश्तरका जायदादका इन्तकाल या उसे पाबन्द करसकती है, देखोचिन्नाया बनाम पीरूमल 13 Mad. 51;परन्तु और किसी मतलबके लिये नहीं यदि करे तो उस जायदादका नीलाम या रेहन रद किया जासकता है, देखोरामदाल बनाम पायोध्याप्रसाद 28 All. 328; बीरकिशोरसिंह बनाम हर. बलमी नरायनासंह 7 W. R.C_R. 5077 31 All. 176.
पिता द्वारा किये हुये इन्तकाल, महज़ खान्दानकी ज़रूरतका बनाना काफ़ी न होगा-गिरधारीलाल बनाम किशनचन्द्र 85 I. C. 463; A. I. R. 1925 Lah. 240.
पिता द्वारा रेहननामा-जबकि पिता, जो कि किसी संयुक्त हिन्दू परिवारका प्रबन्धकर्ता होता है यदि वह बिना कानूनी आवश्यकता या पहिलेका कर्ज चुकानेनी गरज़से, कोई रेहननामा करे, और इसके पश्चात् जायदादका बटवारा हो और बटवारेमें राहिनकी स्त्रीका भी हिस्सा लगाया जाय, तो रेहननामेका प्रभाव राहिनकी स्त्रीके हिस्सेपर न पड़ेगा, सिर्फ राहिनके हिस्से