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दफा ४७८]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
उसकी पाबन्दी पुत्रोंपर है। छोटूराम भीखराम बनाम नारायन A. I. R. 1926 Nag. 49.
पहिलेके रेहननामे की अदाईके हेतु माता द्वारा इन्तकाल--खरीदारपर यह पावन्दी नहीं है कि वह इस बातको देखे, कि रकम ठीक रीतिपर खर्च की गई है। विश्वनाथ भाट बनाम मालप्पा निंगप्पा 92 I. C. 628; A. I. R. 1925 Bom. 514.
इस बातके साबित करनेकी जिम्मेदारी कि वह कर्ज जो संयुक्त परिवार के किसी सदस्य द्वारा लियागया है। परिवारके लाभके लियेथा, कर्ज देनेवाले पर होना चाहिये और खास कर उस समय, जब उसने परिवारके कुदरती प्रधान यानी पिताके साथ मामला न किया हो, बक्लि पुत्रके साथ जो अन्य ग्राममें रहता हो और जिसने कर्ज लेनेपर केवल अपने हस्ताक्षर कर दिये हैं
और इस सम्बन्धमें, कि वह कर्ज किस लिये या किस पारिवारिक व्यवसायके लिये लिया गया है. कुछ भी न बताया गया हो । नारायणसिंह बनाम मोहन सिंह 8 Lah. L. J. 10; 27 Punj L. R. 95, 93 I. C. 340; A. I. R. 1926 Lah. 214.
पिता द्वारा इन्तकाल-जब हिन्दू पुत्रों द्वारा अपने पिताके किये हुए इन्तकाल को,कानूनी ज़रूरत या पूर्व कर्जकी अदाई न होनेकी सूरतमें, मंसूख करनेकी नालिशकी जाती है उस सूरतमें उन्हें यह बतानेकी ज़रूरत नहीं होती कि कर्ज गैर कानूनी या गैर तहजीबी था; यह खरीदने वालेका कर्ज साबित करे । जगतसिंह बनाम बिक्रमसिंह 88 I.C. 900; A. I. R. 1925 Oudh. 675. दफा ४७८ अनुचित कामोंके कर्जका पुत्र ज़िम्मेदार नहीं है
याज्ञवल्क्य स्मृति ऋणदान प्रकरण में याज्ञवल्क्य कहते हैं किसुराकामद्यतकृतं दण्ड शुक्लावशिष्टकम् वृथादानं तथैवेह पुत्रोदद्यान्नपैतृकम् ।याज्ञवल्क्य१-४७ धूर्ते बंदिनि मल्लेच कुवैद्ये कितवे शठे चाट चारण चौरेषु दभवति निष्फलम् । शातातप
अर्थात्--शराब पीनेके लिये, कामेच्छासे विषय भोग करनेके लिये, जुवा खेलनेके लिये, और जुरमानेका या महसूलका जो रुपया देना बाकी हो, या वृथादान या धूर्त, बन्दीजन, पहेलवान, कुवैद्य, कपटी, शठ, चाट, चारण तथा चोरके देनेका जो इकरार किया हो, बापके किये हुए ऐसे कर्जीके देनेका