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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्जा
[सातवां प्रकरण
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पिताकी जिन्दगीमें ही पिताके कर्जकी जिम्मेदारी पुत्रपर पैदा हो जाती है। मु. कालका देवी बनाम गङ्गा बक्ससिंह 12 0. L. J. 306; 88 I. C. 127; A. I. R. 1925 Cudh. 435.
पिता द्वारा--पुत्रोंपर पिताके कर्जकी अदाईकी जिम्मेदारी है यदि वह गैर-कानूनी या गैर-तहजीबी न हो, गिरधारीलाल बनाम किशनचन्द 85 I.C. 463; A. I. R. 1925 Lah. 240.
पुत्रों की जिम्मेदारी--कान्तीचन्द्र बनाम उदयबंशA.I.R.1925Nag.7
पुत्रकी जिम्मेदारी अलाहिदा होने के बाद--पिता और पुत्रकी अलाहिदगीके पश्चात, पुत्रपर पिताके साधारण क़र्जकी जिम्मेदारी नहीं होती। इस सूरतमें पिताका कोई सरमाया पुत्रके कब्जे में नहीं होता, इसलिये कोई असर नहीं पड़ता; रामगुलामसिंह बनाम नन्दकिशोरप्रसाद 4 Pat. 469; 6 Pat. L I. 613; 88 I. C. 813; ( 1925 - P. H. C. C. 341; A. 1. R. 1925 Pat. 688.
पवित्र जिम्मेदारी--पुत्रोंपर अपने पिताका कर्ज, उसकी जिन्दगीमें ही भदा करनेकी पवित्र जिम्मेदारी है। केवल यह बात कि बटवारेकी नालिशमें पिताके खिलाफ़ एक व्यक्तिगत डिकरी हुई, इस बातका प्रभाव नहीं है कि क्रजे गैर तहजीबी या गैर कानूनी है । रघुनाथ प्रसादसिंह बनाम बासुदेव प्रसादसिंह 3 Pat. L_J. 764; 88 1.C.1012;A.I.R. 1925 Patna. 823.
धार्मिक जिम्मेदारी-दुरुपयोगका प्रश्न, नियतका प्रश्न है। जब कोई हिन्द पिता, किसी ऐसी रकमको जो उसे दी जाती है, दूसरे मनुष्योंमें जो उसमें हिस्सा पाने के अधिकारी हैं तकसीम करने में देर लगाता है या तक्रसीम नहीं करता, तो यह दुरुपयोग नहीं होता और उसके पुत्रोंपर उस क़र्ज़की अदाईके लिये धार्मिक या पवित्र पाबन्दी होती है-गनेशप्रसाद बनाम जोतसिंह 87 I. C. 1017; A. I. R. 1925 Oudh. 719.
पिता द्वारा वर्ज़-चितनवीस बनाम नाथू साझ A.I.R. 1925Nag.2.
एक हिन्दू विधवाने अपनी जायदादको किती मनुष्यके हकमें समर्पित किया। उसकी मृत्युके पश्चात् दूसरे व्यक्तिने उसके कब्जेके लिये नालिश किया । उस व्यक्तिने जिसके हकमें समर्पण किया गया था, मुक़द्दमेंमें चाराजोईकी, किन्तु वह अन्तमें नाकामयाब रहा। तय हुआ कि फैसलेका क़र्ज़ न तो गैर कानूनी था और न गैर तहज़ीबी, और डिकरीदारको अधिकार था कि वह अपने खर्चकी डिकरी की तामील, उस पैतृक सम्पत्तिपर करावे जो कर्जदारके पुत्रके कब्ज़ेमें थी; रुद्रप्रताप बनाम शारदा महेश 23 A. L.J. 467, L. R.6 AIL.32188 I.. 200: A. I. R. 1925 Alla71.