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[ छठवां प्रकरण
आदमी अपने हिस्सेकी तादाद नहीं बता सकता क्योंकि दूसरे कोपार्सनरोंके मरने या पैदा होने से उसके हिस्सेकी तादाद बढ़ घट सकती है बटवारा होने के बाद हिस्से की तादाद मालूम हो सकती है बीचमें नहीं ।
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मुश्तरका खान्दान
दायभागमें मालिकाना अधिकारकी नहीं बल्कि क़ब्ज़ेके अधिकारकी एकता है अर्थात् हर एक कोपार्सनरका हिस्सा निश्चित रहता है किसी दूसरे कोपार्सनरके मरने या पैदा होनेसे बढ़ता घटता नहीं, बटवाराके पहिले यह बात मालूम रहती है कि किस कोपार्सनरका कितना हिस्सा है पिता के मरने के बाद पुत्रोंका क़ब्ज़ा जायदादपर एकसां होता है क़ब्ज़ा एकसां होनेकी हालत में कोई दो पुत्र यह नहीं कह सकते कि दो आधे हिस्सों में अमुक आधे हिस्सा हमारा है ( हिस्साकी तादाद निश्चित रहेगी मगर जायदाद के क़ब्ज़े मैं नहीं ) ऐसा वह बटवाराके बादही कह सकते हैं । दायभागमें मुश्तरका क़ब्ज़ा तोड़ने का नाम बटवारा है और मिताक्षरामै मुश्तरका अधिकार तोड़ने का नाम बटवारा है
दफा ४६९ दायभागमें सरवाइवरशिप
दायभागलॉमें सरवाइवरशिपका हक़ नहीं होता जैसा कि मिताक्षरा में होता है, देखो - - दफा ५५८ - १. इस स्कूलमें अपने हिस्सेपर कोपार्सनरका पूरा अधिकार होता है ।
दफा ४७० कोपार्सनर का पूरा अधिकार
दायभाग लॉ हरएक कोपार्सनर अपने हिस्सेको बिना पूंछे दूसरे कोपार्सनरों के इन्तक़ाल कर सकता है यानी बेंच सकता है, रेहन कर सकता है, दान कर सकता है, वसीयत या और जो जी चाहे कर सकता है मगर मिताक्षरा लॉमें ऐसा नहीं हो सकता, देखो - केंवलराम बनाम रामहरी 4 Beng. Sel. R. 196,
दफा ४७१ अदालतकी डिकरीका असर
जब किसी दायभागलॉ मानने वाले कोपार्सनरपर क़ज़ैकी डिकरी अदा- लतसे हो उसमें उसका हिस्सा जिसने नीलाम में खरीद कियाहो वह खरीदार उस कोपार्सनर की जगरपर अधिकार प्राप्त कर लेता है मगर मिताक्षरा लॉमें ऐसा नहीं होता, देखो - 10 Cal. 244.
इसी तरहपर हर एक कोपार्सनर अपना हिस्सा किसी दूसरे आदमी को पट्टापर भी दे सकता है और पट्टा लेने वाला उसकी जगह कोपार्सनर बन जाता है जैसा कि खरीदार, देखो - रामदेवल बनाम मित्रजीत 17 W. . R. 320; मेकूडानल्ड बनाम लालाशिव 21 W. R. 17.