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[ छठवां प्रकरण
आदोलाल 5 Cal. 113. नरायन बनाम लोकनाथ 7 Cal. 461. मिताक्षराला में बापके अधिकार मौरूसी जायदाद के इन्तक़ालमें महदूद रखे गये हैं देखो इस किताबकी दफा ४४४.
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मुश्तरका खान्दान
दफा ४६४ लड़के बापसे बटवारा नहीं करा सकते और न हिसाब मांग सकते हैं
दायभागलॉ में लड़कोंका कोई हक़ उनकी पैदाइशसे मौरूसी जायदाद मैं नहीं होता इसलिये उस जायदादका बटवारा भी लड़के बापसे नहीं करा सकते और न उस जायदाद के इन्तज़ाम करनेका हिसाब तलब कर सकते हैं। बाप जायदादका तनहा पूरा मालिक होता है और ऐसा माना जाता है किं वह उसकी खास जायदाद है, उसे अधिकार है कि जैसा इन्तज़ाम चाहे करे, देखो - दायभागलॉ चेप्टर १ दफा ११-३१-३८-४४-५०, चेप्टर २ दफा ८ मिताक्षरालों में ऐसा नहीं होता उसमें लड़के बटवारा करा सकते हैं तथा हिसाब देख सकते हैं देखो इस किताबकी दफा ४१०.
दफा ४६५ दायभागलॉके अनुसार पैतृक सम्पत्ति कौन है ?
यह बात दोनों स्कूलोंमें मानी गयी है कि बाप, दादा, परदादासे मिली हुई जायदाद पैतृक जायदाद होती है मगर मिताक्षराके अनुसार पैतृक जायदादमें लड़का अपनी पैदाइशसे हक़ प्राप्तकर लेता है दायभागलॉ में नहीं करता । दफा ४६६ दायभागलॉके अनुसार कोपार्सनर
मिताक्षराला में कोपार्सनरीकी बुनियाद पुत्रका उत्पन्न होना है यानी पुत्र पैदा होतेही कोपार्सनरी शुरू हो जाती है देखो दफा ३८६ लेकिन दायभागलों में बापके मरनेके बाद से कोपार्सनरी की बुनियाद पड़ती है जब तक बाप जीवित है कोपार्सनरी नहीं समझी जाती मरनेके बाद कोपार्सनरी होने पर मृत पिता के पुत्र उसके वारिस बनकर उसकी पैतृक और अलहदा जायदाद आपसमें कोपार्सनरकी तरह रखते हैं । इन पुत्रों अर्थात् कोपार्सनरों में से किसीके मरने पर उसके वारिस उसके हिस्से के पानेके अधिकारी होते हैं और उसकी जगह कोपार्सनरी की हिस्सेदारीमें शरीक हो जाते हैं इस स्कूल
पुत्र, लड़कियां विधवा या विधवायें भी वारिस हो सकती हैं इससे साफ़ है कि दायभागमें स्त्रियां भी अपने बाप या पतिकी वारिस बनकर कोपार्सनरीमें शरीक हो जाती हैं, परन्तु मिताक्षराला में कोई स्त्री कोपार्सनरीमें नहीं शरीक हो सकती । दायभागलों में कोपार्सनरी स्त्रीसे शुरू नहीं होती, तथा स्त्रियां आपस में कोपार्सनर नहीं होतीं बल्कि वारिस तरीके कोपार्सनरी में शामिल रहती हैं ।